दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ बहà¥à¤¤ बड़ी है। इतनी विशाल कि इसे पूरी तरह जान पाना नामà¥à¤®à¤•à¤¿à¤¨ है। फिर इंसानों के पास अब वकà¥à¤¤ à¤à¥€ कहां है। लोग अब खà¥à¤¦ को à¤à¥€ à¤à¥‚लने लगें हैं। अपनी जड़ों से दूर हो गठहैं। à¤à¤¸à¤¾ ही कà¥à¤› हाल हिमाचली पहाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾ का है। यूं तो इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में डेॠकरोड़ से à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लोग हिमाचली बोलते हैं लेकिन फिर à¤à¥€ हालात बदतर हैं। हिमाचल तो 1948 में ही राजà¥à¤¯ बन गया था। पहाड़ी अब तक à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं बन पाई। कारण साफ है। दरअसल हमारे देश में जरूरत और जनाकांकà¥à¤·à¤¾à¤‚ओं से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ महतà¥à¤µ नेताओं की मरà¥à¤œà¥€ का होता है। यह हाल तब है जब राजà¥à¤¯ का गठन ही à¤à¤¾à¤·à¤¾ के आधार पर हà¥à¤† था।
हिमाचल के नेताओं को पहाड़ी में कोई दिलचसà¥à¤ªà¥€ नहीं है। वरना आज पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ हर कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में अवà¥à¤µà¤² है। बेहतरीन शिकà¥à¤·à¤¾, आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• साकà¥à¤·à¤°à¤¤à¤¾, चौबीस घंटे बिजली, दà¥à¤°à¥à¤—म इलाकों में à¤à¥€ सड़कें, देश में सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ आय, अपराध शूनà¥à¤¯à¤¤à¤¾ और चौतरफा विकास। हिमाचल ने हर जगह चौंकाने वाले अनà¥à¤¦à¤¾à¤œ में à¤à¤£à¥à¤¡à¥‡ गाड़े हैं। लेकिन दिल की धड़कन को ही सà¥à¤¨à¤¾à¥¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के बारे में कà¤à¥€ सोचा ही नहीं। हमारे नेता साहितà¥à¤¯à¤• जो नहीं रहे। इसका खामियाजा à¤à¥€ हमने खूब à¤à¥à¤—ता है। अब à¤à¥€ सह रहें हैं। दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤° में हिमाचल महज परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ सà¥à¤¥à¤² बन के रह गया है। अपना असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ खो चà¥à¤•à¤¾ है। प
हाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾ को समà¥à¤®à¤¾à¤¨ न मिल पाना घातक सिदà¥à¤§ हà¥à¤† है। à¤à¤¸à¤¾ नहीं है कि कोई पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ ही नहीं हà¥à¤†à¥¤ पहाड़ी के लेखकों ने साठसाल पहले ही लिखना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया था। पहाड़ी का अपना विपà¥à¤² साहितà¥à¤¯ है। इसमें अब तक तकरीबन 300 कविता संगà¥à¤°à¤¹, 100 कहानी संगà¥à¤°à¤¹, 150 नाटक व जोड़ा जैसे उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लिखे जा चà¥à¤•à¥‡ हैं। साहितà¥à¤¯ अकादमी और नेशनल बà¥à¤• टसà¥à¤Ÿ के तहत à¤à¥€ पहाड़ी कावà¥à¤¯ मौजूद है। à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ दतà¥à¤¤ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ की शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¦à¥à¤à¤¾à¤—वत गीता, डा पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‚ष गà¥à¤²à¥‡à¤°à¥€ की हिमाचली कहानियां और लोक कथाà¤à¤‚, डा पà¥à¤°à¥‡à¤® à¤à¤¾à¤°à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤œ की कविता सिरां, मौलू राम ठाकà¥à¤° का हिमाचली à¤à¤¾à¤·à¤¾ का मोनोगà¥à¤°à¤¾à¤«, पंकज का महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ और संसारचनà¥à¤¦ का माया पहाड़ी के महाकावà¥à¤¯ बने हà¥à¤ हैं। दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ से यह सब पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ सीमित हैं। सच यही है कि पहाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं है। यह महज à¤à¤• बोली है।
पहाड़ी का असीमित जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मौखिक है। डा पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‚ष गà¥à¤²à¥‡à¤°à¥€ कहते हैं कि पहाड़ी को साठसाल पहले ही à¤à¤¾à¤·à¤¾ का दरà¥à¤œà¤¾ मिल जाना चाहिठथा। लोग कहते हैं कि पहाड़ी में विविधता है। हर चार कोष पर इसका रूप बदलने लगता है।शà¥à¤¡à¤¾ गà¥à¤²à¥‡à¤°à¥€ इसका à¤à¥€ जबाव देते हैं। वे कहते हैं कि यही तो अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ है। à¤à¤¾à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ नासमà¤à¥€ है। दरअसल हर à¤à¤¾à¤·à¤¾ में बोलियां होती हैं। पहाड़ी में à¤à¥€ हैं। हिनà¥à¤¦à¥€, बांगà¥à¤²à¤¾, तमिल, गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€, मराठी, तेलगू आदि à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में à¤à¥€ बोलियां हैं। दरअसल यही बोलियां à¤à¤¾à¤·à¤¾ को समृदà¥à¤§ बनाती हैं। सरकार को कम से कम पहाड़ी में शोध और à¤à¤®à¤ आदि की शà¥à¤°à¥‚आत करनी चाहिà¤à¥¤
हिमाचल के समाचारपतà¥à¤°à¥‹à¤‚, पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं और टीवी चैनलों को à¤à¥€ पहाड़ी के लिठसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ कराना चाहिà¤à¥¤ इसकी सखà¥à¤¤ जरूरत है। आजकल इंटरनेट का जमाना है। माई हिमाचल जैसी वेबसाइटें पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हैं। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥€ पहाड़ी को महतà¥à¤µ देना चाहिà¤à¥¤ पहाड़ी बोलने वालों को à¤à¥€ अपनी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ में बà¥à¤²à¥‰à¤— बनाने चाहिà¤à¥¤ इसी पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ से हिमाचली पहाड़ी को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ पहला बà¥à¤²à¥‰à¤— शà¥à¤°à¥‚ किया गया है। अà¤à¥€ यह आरमà¥à¤à¤¿à¤• चरण में है।
बà¥à¤²à¥‰à¤— देखने के लिठhttp://galsuna.blogspot.com/ पर कà¥à¤²à¤¿à¤• करें. यह पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ बहà¥à¤¤ ही छोटे सà¥à¤¤à¤° पर शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤† है. à¤à¤²à¥‡ ही इसमें कमियां हों लेकिन आपके सहयोग से हर बाधा पार कर ली जाà¤à¤—ी.
धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ सहित.