हिमाचली मंसूबों को नई राह का इंतजार

सपनों की महफिल, सपनों के इश्तहार और जुनून में झांकने की जद्दोजहद का अजीब संयोग हिमाचल को अलग व बेहतर  बनाता है | शायद ही किसी अन्य राज्य ने वक्त के, थपेडों से बाहर निकल कर ऐसी ताकत दिखाई हो | प्रगतिशील इतिहास की ऐसी करवटों का लेखाजोखा हिमाचल को एक माँडल राज्य बना चुका है, लेकिन वक्त कभी खामोश नही होता |चुनौतियों के पलडों पर हिमाचली मुसीबतें और हिमाचली मंसूबों के संतुलन की कसौटी आज भी जारी है | ठीक है हिमाचल के हिस्से काफी प्रगति आई और अपने कद के हिसाब से यह राज्य अब राष्ट्रीय उम्मीदों को भी ढो सकता है, लेकिन बोझ अभी भी प्रदेश की समस्याओं की और इशारा करता है | बेशक प्रगति के कई मील पत्थर गिने जा सकते हैं, लेकिन नए चरण की तलाश में हिमाचली आकांक्षाओं का नया सवेरा दस्तक दे चुका है | मात्रात्मक द्रष्टि से हिमाचली मंसूबों की फसल में कई स्कूल, कालेज व दफ्तरों की कतार देखी जा सकती है हैसियत में खनकते सियासी वादों की पूरी तस्वीर देखी जा सकती है | सडक, पानी,बिजली व राजनीतिक मेहरबानी के पुंज कमोबेश हर सरकार की इबारत में दर्ज होते रहे, लेकिन अब गुणात्मक लक्ष्यों की जमीन पर चलने की बारी है | हिमाचल अब नन्हा नही, नन्हे कदमो को चौडी राह पर ले जाने का संकल्प चाहिए | यह केवल सरकारी दायित्व नही, सामाजिक प्रतिबद्धता के सबूतों का श्रृंगार भी है | सर्वप्रथम हिमाचली मानसिकता का निजीकरण अभिलाषित है | सरकारी ढोल-नगाडों को विराम चाहिए, फिजूलखर्ची को अराम चाहिए | हर कार्य सरकार क्यों करे, हर जगह सरकारी दखल क्यों रहे | सार्वजनिक संस्थानों की बेहतरी तो सही है, लेकिन ठेकेदारी की ऐसी परंपराएं अब उपयुक्त आचरण नही | प्रदेश को योजनाएं कम, नीतियां अधिक चाहिएं | बेशक हर राज्यत्व दिवस की चौखट पर आम हिमाचली की आमदनी का सरकारी आंकडा आगे सरक जाता है, लेकिन बेरोजगारी की लकीरों में कैद जवानी का आकाश कैसे खुलेगा | हिमाचली अस्तित्व के बंधन यूं तो सरकारी पहरेदारी में अपना भविष्य देखते है, लेकिन केवल यही भविष्य नही | प्रदेश की प्रगति का द्वितीय चरण सरकारी खजाने के अलावा निजी प्रदर्शन को नए परिप्रेक्ष्य में देखता है | ये चाहे शिक्षा-चिकित्सा से जुडे विषय हों या उपलब्धियों के सागर में नए टापुओं की खोज हो, हिमाचली जीवन में गुणवता के संदर्भ नई कहानी व नए पात्रों का आलिगंन कर रहे है | प्रदेश को लकीर का फकीर बना देने की अदाकारी में केवल राजनीतिक उद्देश्य ही पूरे होगें, जबकि भविष्य की दौड में ताजगी का एहसास अपरिहार्य है | केवल स्कूल-कालेजों या अस्पतालों की गवाही से हिमाचली मकसद बुलंद नही होता | प्रदेश के बाहर घूमते हिमाचली संकल्प, भीतर क्यों परेशान है | क्यों अभिभावक हिमाचल से बाहर बच्चों का भविष्य तराशते है या चिकित्सा की विशिष्ट सेवाओं का कोई भी छोर प्रदेश में नही मिलता | प्रदेश की अधोसंरचना के लिहाज से भी वर्तमान विभागीय कसरतों से बाहर निकलकर सोच व संदेश बदलना पडेगा |

(दिव्य हिमाचल से साभार)

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