टीट- बीट: मन के मरोड़…….

क्यों चौंक गए न की मन में मरोड़ कैसे उठ सकते है,उनकी जगह तो पेट है..लेकिन जनाब ताज़ा शोध के मुताबिक मन में भी मरोड़ उठते हैं, और यह शोध किया गया है अपने मनकोटिया साहब पर.

जी हाँ वही मनकोटिया जिन्होंने मायावती के हाथी से “गिरने “के बाद राजनीती को मायावी बताते हुए अलविदा कह दिया था. एक बारगी तो लगा की मनकोटिया का चैप्टर बंद हो गया. लेकिन अब फिर से मनकोटिया के मन में मरोड़ उठने लगे हैं.

मात्र कुछ माह की फुर्सत के बाद मनकोटिया ने अदालत-ए-अवाम का गठन कर दिया. बतौर स्वंयभू जज उन्होंने इस अदालत मैं शाहपुर से कुल्लू के स्की विल्लेज के खिलाफ मुक़दमा भी चलाया लेकिन अदालत-ए-अवाम को अवाम का सहारा न मिलता देख वोह बीच में रह गया. बताते हैं की उन्हें अपनी अदालत की यह “तौहीन “पसंद नहीं आई है और अब वोह एक बार फिर से राजनीती में लौटने की सोच रहे हैं ताकि फिर से आस-पास चमचों की भीड़ देख सकें. दुसरे शब्दों मैं उनके मन में फिर से मरोड़ उठने लगे हैं. हालाँकि इस मरोड़ की एक बजह चंद्रेश का भरी बरसात में धर्मशाला को सूखा कर जाना भी बताया जा रहा है. धर्मशाला में कांग्रेस नेत्रित्व विहीन है और किशन कपूर को पांच साल बाद चुनाव हारने की आदत है…यह बातें मनकोटिया के मन के इस मरोड़ को हिलोरे दे रही हैं.

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