Palampur bus stand, a picture of negligence by Himachal road transport

dsc00666.JPGPALAMPUR: The water logging in the local bus stand during rains has become a matter of serious concern. Despite the fact that over two crores has been spent on the construction of new bus stand two years ago but it is in bad shape. Particularly during rains it become quite difficult for passengers to approach the ticket counters because of heavy water logging in and around the bus stand.

Senior officers of the Himachal Road Transport corporation are well conversant with the situation but no efforts were made in past two years to solve the problem. Palampur bus stand is one of the important bus stands of the state and thousands of passengers daily board buses from here to different destinations.

The construction of this bus stand was taken up in 1991, when Mr. Shanta Kumar was the Chief Minister of the state. It is a sad state of affairs that in past eighteen years no serious efforts were made for the completion of this bus stand as per original plan, which is urgently required for this fast developing town.

The government had acquired 75 kanal of valuable land in the heart of the town for this bus stand. According to original blueprint there was a plan to construct booking offices, clock room, guest house, official complex to house HRTC offices, banks alongwith a greenbelt around the bus stand. Besides, there was also a proposal to set up a shopping complex under self financing scheme. HRTC had declared that this bus stand would be the most modern and biggest one in the state. But even after a gap eighteen years bus stand is still half completed, only one portion of the bus stand was completed and remaining work was left half way.

Mr Prem Kumar Dhumal Chief Minister who recently visited the Palampur town announced that his government was well conversant with the problem of public of Palampur. Necessary steps were being initiated for the improvement in the bus stand complex. He announced there was no shortage of funds for this project.

Mr. Dhumal expressed concern why congress government deviated from the original plan of the bus stand and constructed the existing buildings in gross violation of rules. He said he had already received complaints of poor construction of bus stand complex and government would also look in to it.

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1 Comment

  1. says: dron sharma

    FOR THE STUDENTS ONLY ……….. 17.04.08
    “परिश्रम तेरे बाएँ हाथ में, तो सफलता तेरे दायें हाथ में”

    बात कहना आसान होता है, अंजाम देना मुश्किल. बात हिमाचली विद्यार्थियों की कर रहा हूँ, इसलिए अब सब सन्दर्भ, अब उदाहरण हमारे प्रदेश के अनुकूल ही दूंगा. यूं तो कोई भी पर्वत चढ़ना आसान नहीं, पर लक्ष्य अगर एवरेस्ट की चोटी हो, सर्वोपर्री हो, तो तैयारी से लेकर विजय तक परिश्रम भी सर्वाधिक करना पड़ता है. जिसने बचपन से जवानी तक, कभी पहाड़ देखे ही नहीं, उसके लिए पहाड़ चढ़ पाना बहुत मुश्किल होगा. कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन में सफलता पाना पहाड़ चढ़ने की तरह एक मुश्किल काम है. न सिर्फ़ चाह चाहिए, बलकी वर्षों में परिश्रित परिश्रमी की लगन, और भरसक प्रयास चाहिए. सभी बहाने भुला के, सभी विपदाओं का शोर अनदेखा करके, अपनी कुछ तुत्छ इच्छायें दबा के, जब नित्य कुछ घँटे आप मेहनत करेंगे तो सफलता की सम्भावना है. संभावना है, क्यूंकि है निश्चित कुछ भी नहीं.

    “तू कर यत्न भी तो मिल नहीं सकती सफलता, यह उदय होती लिए कुछ, ध्येय नयनों के निलय में”

    हरिवँश राय बच्चन जी हिन्दी भाषा के प्रमुख कवियों में से एक है, और उल्लेखित पंक्ति उनकी कविता “बाट की पहचान” से ली गयी है. कविता की पहली दो पंक्तियों पर ध्यान दीजिये: “पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान करले”. सफलता, चाहे वो इम्तिहान में हो, या अभियान में, उनके हाथ लगती है, जो सफलता के लिए ज़रूरी ज़ज्बा रखते हों. पहले चाह चाहिए, फ़िर राह चाहिए. एक बार ध्येय निश्चित कर लिया, तो जान लिया जाना कहाँ है. एक श्लोक है संस्कृत में, जो बुजुर्ग लोग अकसर कहा करते है: ” उद्यमेन ही सिद्धयन्ति, कार्याणि न मनोरथैः/ न ही सुप्तस्य सिंहस्य, प्रविशन्ति मुखे मृगः” सो जान लीजिये, लक्ष्य निर्धारित करने के बाद, ९९ प्रतिशत समय परिश्रम में जाता है. रास्ते बहुत है, पर मंजिल पर वही पहुँचते है जो चलते चले जाते है. बच्चन जी ने “मधुशाला” में एक रुबाई कही है:

    “मदिरालेय जाने को घर से, चलता है पीनेवाला
    किस पथ जाऊँ असमंजस में सोच रहा भोलाभाला
    अलग अलग पथ बतलाते सब, पर मैं बतलाता हूँ
    राह पकड़ कर एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला”

    हमारे हिमाचल में शिक्षा और शिक्षक भारत के अनेकों प्रदेशों के मुकाबले बहुत उच्च कोटी के है. परन्तु फ़िर भी राष्ट्रीय स्तर कि सभी परीक्षाओं में हमारे विद्यार्थी दूसरे प्रदेशों के मुकाबले पिछडे हुए हैं. आखिर क्यों? मुख्यतः यह परिश्रम की कमी का ही नतीजा है. अगर किसी को समझाने बैठता हूँ, तो हजारों बहानों की लिस्ट सुनने को मिलती है. सच्चाई यह है की आई. आई. टी. या आई. ए. एस. या आई. आई. एम. के लिए डट कर, मिट कर, झपट के मेहनत और भरपूर ज़ज्बा, लगन, आत्मविश्वास और प्रेरणा चाहिए. एक स्तर के बाद, सभी सक्षम होते हैं. क्षमता हर इंसान में निहित है परन्तु सिर्फ़ तेज़ दिमाग होना किसी परीक्षा में सफलता कि गारेन्टी नहीं. यह बात हर स्तर पर, हर तरह के खेल, फन, कला, शिक्षा,राजनीति, व्यवसाय, हर क्षत्र में लागू होती है. अच्छा गला होना गायक नहीं बनाता, उसके लिए सालों रियाज़ करना पड़ता है, किसी गुरु के पास साधना करनी पड़ती है, एकाग्र होना पड़ता है. गांगुली-सा बैट्समैन बनना हो, तो बचपन से ही रोज़ प्रयास, रोज़ व्यायाम करने पड़ते है. टीम से निकले जाने पर भी हिम्मत खोये बिना दुबारा अपने होंसले और परिणामों के बलबूते पर टीम में वापिस आना होता है.

    तेज़ दिमाग है मेरे भाई, तो फ़िर ६० प्रतिशत ही क्यों ला पाते हो? अच्छा खेलते हो, तो स्कूल टीम में क्यों नहीं? हिसाब अच्छा करते हो, पर कभी शत प्रतिशत लो ला नहीं पाये? ९० और १०० में क्या फरक होता है? बताता हूँ: ९० घर बैठता है, १०० अच्छी नौकरी पाता है. परिश्रम और उससे मिलने वाली सफलता सिर्फ़ अंकों से ज़ाहिर नहीं होते. यह एक आदत होती है, जिसको बचपन से डालना पड़ता है. जीवन में करिश्मे नहीं होते, सिर्फ़ फिल्मों में होते हैं, या कहानियो में. जितना गुड़ डालोगे, खीर उतनी ही मीठी होगी. आपने अगर रामधारी सिंह दिनकर जी कि रश्मिरथी नहीं पड़ी है, तो ढूँढ के उसका अध्ययन कीजिये. प्रेरणा का असीम सागर है वह. अगर आप आपने को ग्यानी कहते हैं, दार्शनिक समझते हैं, सफल गिनते हैं, और आपने अपने कवियों को नहीं जाना है, आप आपने देश-प्रदेश के इतिहास, रस्मों से वाकिफ नहीं, आपको राजनीति का ध्यान नहीं, आपको अपने धर्म में रूचि नहीं, और अगर आपको सही-ग़लत का पता नहीं, आपके मन में शंकाएँ नहीं, वहम नहीं, हृदय में स्वपन नहीं, मति में गति नहीं, यदि आप सोचते हैं कि आप किसी काबिल है, पर साहस नहीं, निश्चय नहीं, अगर आप में वन्वासों और युद्धों में लड़ कर अपने सिंघासन पाने कि क्षमता नहीं, तो आप उन अन्पढ, जाहिल लोगों से बदतर है, जिनके पास यह सब कर पाने का साधन नहीं. सीखने के लिए हर बड़ा, वृद्ध गुरु है, जिसने जीवन से सीखा है, उसकी सीख पुस्तकों की सीख से ज्यादा लाभकारी है. शिक्षित होना और पढ़ना आना अलग चीज़ें हैं. शिक्षित रहने के लिए आजीवन सीखते रहना पड़ता है.

    “गति प्रबल पैरों में भरी,
    फिर क्यों रहूँ में दर दर खड़ा,
    जब मेरे सामने है आज,
    रास्ता इतना पड़ा,
    जब तक न मंजिल पा सकूं,
    तब तक न मुझे विराम है,
    चलना हमारा काम है.”

    शिवमंगल सिंह सुमन की बहुत अच्छी कविता है, जिसमें प्रेरणा रस कूट कूट के भरा है. इससे भी याद करियेगा. साथ ही “करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान,/ रसरी आवत जावत ते, सिल पर पड़त निशान” पर गौर फमाइयेगा. देखिये, मैं बहुत साल से अपने दोस्तों, पडोसियों, रिश्तेदारों से इन मुद्दों पर बात कर चुका हूँ. मुझसे पूछा जाता है की बेटा तुम बच्चों को सलाह दो. कहता हूँ, बेटा नित्य लगन से प्रयत्न करो. लोग समझते है कि मैं उनको उल्लू बना रहा हूँ. कहा जाता है, कि बेटा इनमें तुम जितना दिमाग नहीं है. माना सबकी मति एक जिनती कुशाग्र नहीं, परन्तु आपकी जो भी क्षमता है, उसका पूरा उपयोग भी तभी होगा न, अगर आप पूरी लगन से मेहनत करें. सभी लोग यह कह कर कि वह इतने विदुषी नहीं सरल राह अपनाते है, और आजीवन पछताते हैं. मैं हर दिन हजारों चीज़ें करने कि कोशिश करता हूँ, और इसीलिए कुछ-कुछ चीज़ें करने में सफल भी होता हूँ. सुबह जल्दी उठना पड़ता है, खेलने और टी वी देखने का समय नियंत्रित करना पड़ता है, अपनी कामनायों को वश में रखना पड़ता है, और साथ ही, चाहे स्तिथि परिस्तिथि कैसी भी हो, पूरी श्रद्धा और सच्चाई से परिश्रम करना पड़ता है. यही बातें एक ही सूक्ति में कही जा सकती थी; (अंत में आएगी) उसको याद रखिये, उसपर अमल करिये, और आपको आपकी हर कोशिश के लिए मेरी शुभकामनाएं, मेरा आशीष देते हुए, में इस लेख को यहीं समाप्त करता हूँ. (अंग्रेज़ी टाइपिंग में कुछ शब्द बहुत प्रयास के बाद भी ग़लत ही छपते हैं, उनके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ).

    FROM : dron sharma ……… hamirpur ………. galod .
    EMAIL : [email protected]

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