WHAT AILS MY DEAR HIMACHAL – III

LANGUAGE

आज एक तीसरी चीज भी हम हिमाचल वासियों को सता रही है वह है हमारे पास अपने आप को व्यक्त कर पाने का माध्यम्. हम लोग या तो हिन्दी का प्रयोग करते हैं या अंग्रेजी का.आखिर ऐसा क्यों करते हैं हम लोग ? हम लोग अपनी भाषा और संस्कृति से इतना दूर क्यों भागते हैं ? मुझे बडा दुख: होता है जब हम आपस मे बात करने के लिए अपनी भाषा की जगह किसी दूसरी भाषा क प्रयोग कजते हैं. क्या हमारी भाषा इतनी गई गुजरी है कि हम इसका प्रयोग आपस मे बात करने के लिए भी नहीं कर सकते हैं ?

अभी हाल ही की बात है जब मैं दिल्ली से घर जा रहा था तो मुझे एक ऐसा ही दृश्य देखने को मिला. एक वृद्ध महिला बस मे चढी. कंडक्टर ने उससे घुडक कर पूछा ” बुड्ढी कित्थे जाणा ?” बेचारी बुढिया डर कर बोली,” जी मैं ज्वाला जी जाणा है.” “लेया फेर बीह रपइए कढ छेती छेती.” बुढिया ने बीस का नोट निकाल कर उसे दे दिया. जब मैने उस कंडक्टर से पूछा कि वह कहां का रहने वाला है तो उस्ने बताया कि वह हमीरपुर का रहने वाला है. जब मैने फिर उससे पूछा कि क्या उसे प्हाडी भाषा नहीं आती है तो वह कहने लगा कि आती है. तो फिर वह उस बुढिया से पंजाबी मे क्यों बात कर रहा था ? वह खिसिय गया. बोला आदत ही पड गई है. यानि हमें पंजाबी मे बात करने की आदत पड जाती है और हम अपनी भाषा भूल जाते हैं क्या? ऐसा हरगिज नही होता है. दर असल हम लोग पंजाबी मे बात करके अपने आप को दूसरों से ऊपर समझने लगते हैं. अगर वह पहाडी भाषा का प्रयोग करता तो कहता,” अम्मा जी तुसां कुथू जाणा?” कितना नम्र और सुनने मे अच्छा लगता.
अक्सर ऐसा होता है कि जब दो हिमाचली कहीं मिलते हैं तो या तो हिन्दी मे बात करते हैं या अगर अपनी भाषा मे बात करते हैं तो इधर उधर देखते रहते हैं कि कोई सुन तो नहीं रहा है. क्या अपनी भाषा मे बात करना कोई गुनाह है? अगर इसी तरह से चलता रहा तो वह दिन अब ज्यादा दूर नहीं है जब इस भाषा के सिर्फ चन्द जानकार ही रह जायेंगे. आज हमारे प्रदेश मे चारों ओर यही देखने को मिल रहा है. आज हमारे बच्चे घरों मे भी हिन्दी मे ही बातें करते हैं. आज उन्हें अपनी भाषा कि गिनती का भी पता नहीं है. न हो तो आप अपने बच्चे से पूछ कर देखें कि छपूंजा कितने होते हैं.

आज हर प्रान्त मे सब की अपनी अपनी भाषा है. और वही भाषा उन्हें आपस मे जोडे रखती है. हर प्रान्त मे नौकरी पाने के लिए वहां की भाषा का जानना जरूरी है. यही कारण है कि आज हम पंजाब मे नौकरी नहीं पा सकते और न ही राजस्थान मे. मगर वहां के लोग हिमाचल मे नौकरी पा सकते हैं.हम न केवल अपनी भाषा को ही भूल रहे हैं. अपितु अपनी संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं. एक बार मुझे एक बारात के साथ अमृतसर जाने मौका मिला. जब बारात मे मिलनी की रस्म चल रही थी तो कुछ मनचले पीछे पंजाबी गानों पर भांगडा नाच रहे थे. जब मिलनी की रस्म समाप्त हो गई तो लडकी का बाप हमारे पास आया. कहने लगा कि शादी ब्याहों मे नाच गाना न हो तो मजा ही नहीं आता. मगर मै एक बात कहना चाहता हूं. आप लोग भांगडा हम से अच्छा नहीं नाच सकते, और मुझे पहाडी नाच या नाटी देखने का बहुत शौक है वह नाच कर दिखाइए. आप विश्वास करें कि हम सारे बारातियों मे किसी को भी नाटी नहीं आती थी. उस दिन हमें कितनी शर्म आई यह मै आप को बता न्हीं सकता. कब हम कांगडी भाषा को जो हिमाचल की बहुसंख्यक भाषा है अपने प्रदेश की लिंक भाषा बना पाएंगे. मगर यह तभी संभव है जब हम इस भाषा को इज्जत की नजर से देखेंगे और इसका प्रयोग बिना किसी शर्म के करेंगे.

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4 Comments

  1. says: Avnish Katoch

    Thakur Saab,

    Mera idea ehi hai ki apni bhasha, pahari jo age leyi ki jana hai aur sari mehnat apni sanskriti kane bhasha taeyin hi hai (Idea is to promote our unique and beautiful culture). Whole hardwork I do is to bring our unique and beautiful culture to rest of the world.

    But there are few issuesd which we all need to resolve and you are highligting most of them, but at the same time we need to bring the solution, so for this every like minded person need to be on a platform and work together. Team work is the real problem!

  2. says: Mukesh Bhandari

    Mandhotra sahib,
    I agree 100% with your views about not having a common himachali language. I remember while studying in college all the himachalis belonging to 12 distt often ridiculing each other’s language. And we must admit that there is still a strong disliking feeling of old and new himachal in people belonging to both parts. I hope our new generation dont carry this legacy and respect each other’s culture and languages. For example people belonging to Kangra area consider themselves more advance than the rest (what is not true) where as the people belonging to upper areas consider kangra people shrewd and selfish ( what is not true). We shall not forget that unless we dont respect each-other’s culture and language, outsiders will not respect our culture and language.
    Regards.

  3. भंडारी जी,
    जो भी आप कह रहे हो वह सत्य है. मगर समस्या का समाधान भी तो हमें ही ढूंढना है. अगर हम लोग सरकारी तंत्र पर ही निर्भर करते रहेंगे तो कुछ भी होने वाला नहीं है.नई पीढी को ही पहल करनी होगी.एक ऐसी भाषा का विकास करना होगा जो सारे हिमाचल मे बोली और समझी जा सके. जहां तक अपर और लोअर हिमाचल के आपसी मतभेदों का प्रश्न है वह राजनीति के खिलाडियों के पैदा किए हुए हैं. वे लोग अपना उल्लू साधने के लिए इसी कोशिश मे लगे रहते हैं कि जनता को दो गुटों मे विभाजित किए रहें और लोगों को बेवकूफ बना कर अपनी राजनीति गर्माए रखें.जनता उनके झांसों मे आकर समझती रहती है कि वे क्षेत्र विशेष की उन्नति के लिए काम कर रहे हैं जबकि वे सिर्फ और सिर्फ अपनी उन्नति के लिए ही कार्य करते हैं. जब तक जनता इस बात को नहीं समझेगी वे उसे उल्लू बनाते रहेंगे.मेरे विचार पढने और उनसे सहमति जताने के लिए धन्यवाद.

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