डाँ. यशवंत सिहं परमार के कुल पुरोहित, सेवा निवृत अध्यापक व समाज सेवी पंडित श्री हेम शर्मा जी से बातचीत| (हिन्दी अनुवाद)

1. आप डाँ. यशवंत सिहं परमार के कुल पुरोहित रहे है काफी समय उनके साथ बिताया है आपका क्या अनुभव रहा?
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मेरे पिता एक परिवार के सदस्य की तरह समझे जाते थे वे उनके विश्वसनीय ज्योतिषी और मै विश्वसनीस पंडीत था और अब भी हूँ| आज भी उनके एक परिवार के सदस्य की तरह सम्मान मिलता है डाँ. परमार की धार्मिक आस्था दिखावा नही था विवाह दशहरा या जन्मदिनो के अतिरिक्त मैंने उन्हे कभी पुजा पाठ करते हुए नही देखा था एक दिन उनके मुख्यमंत्री काल में ओकओवर के कमरो में घुमते हुए मैंने एक छोटा सा कमरा देखा, एक चारक से पूछा यह क्या है जब उसने बताया कि यह डाँ. साहब का पुजा घर है तो में सुन कर स्तब्ध रह गया क्योंकिं मेरा बीसीयों साल का अनुभव था कि वे अलग से कभी पूजा पाठ नही करते थे मैंने दरवाजा खोला वहां एक आसन था सामने श्री कृष्ण ओर अर्जुन विषाद ग्रस्त रण-क्षेत्र का चित्र था ओर साथ ही धूप बत्ती का पैकिट व एक बुझा हुआ दीपक था बडी सुन्दरता से संवार कर दो पुस्तके रखी हुई थी मैने उन्हे उठा कर देखा तो एक श्रीमद भागवत गीता थी ओर महाऋषि योगानंद द्वारा लिखित पुस्तक योगिककथा मृत्, मै यह देख कर स्तब्ध रह गया यह दोनो पुस्तके अग्रेजी भाषा में लिखी थी मेने इन्हे हिन्दी तथा संस्कृत में पढा था मेरी कुछ शंकाओं का समाधान हुआ की उन पर जब जब भारी राजनेतिक और आर्थिक आपदाएं आती थी तो पहाड की तरह द्र्ढ कैसे रहते थे समझ आया गीता और योगी कथामृत ही उनका समबल थी गीता का उपदेश फल की आशाओं को छोड कर कर्म करेगा तो फल तो अवश्य ही मिलेगा ओर योगानंद जी महाराज का संदेश कि तू कर्म किए जा जो घटित हो रहा है वह तो पूर्व निर्धारित ही है उसपर चलकर ही उन्होने सारी आपत्तियों को झेला था| उनके जीवन की घटनाओं में इन दोनों ही महान चिन्तकों का चित्त प्रभाव एक बार नही अनेक बार देखने का सुअवसर मुझे मिला|

2. डाँ. यशवंत सिहं परमार हिमाचल निर्माता व राजनेता के रुप में जाने जाते है परन्तु उनके जीवन के सामाजिक तथा पारिवारिक पहलुओं के बारे में कोई नही जानता आप क्या कहेगें|
उनका पारिवारिक जीवन बहुत अच्छा नही रहा कारण कि वकालत करने के बाद उन्हे माहाराज सिरमौर ने जज के पद पर नियुक्ति दी परन्तु ईष्या वश उनके विरोधियों को यह बात राज नही आई उन्होने राजा को कुछ ऐसा बताया कि यह सत्यागृह से जुडे है राजा ने उन्हे 24 घण्टे के भीतर सिरमौर छोड्ने का आदेश दिया तथा वह अपने बच्चों को यत्र तत्र छोडकर स्वतत्रंता संग्राम से जुड गए हिमाचल बन जाने के बाद और मुख्यमंत्री पद पाने के बाद भी वे बच्चों की और समग्र ध्यान न दे पाए परिणामतः अपने जीवन काल में अपने लिए एक घर भी न बना पाए| यद्यपि बच्चो की पढाई लिखाई भोजन व्यवस्था की और उनका पूरा ध्यान रहता है परन्तु राजैनिक कठिनाईयों को झेलते हुए उन्हे घर से बाहर आधिक रहना पढता था फिर भी उनका दांपत्य जीवन परिवारिक जीवन बहुत सुन्दर था उनके बच्चों ने नितांत सादा जीवन बिताया और पिता के मुख्यमंत्री होने का कभी कोई अनुचित लाभ नही उठाया| डाँ. वाई. एस्. परमार एक महान व्यक्त्वि था उनकी आंखो में हिमाचल का ही नही समूचे उत्तरी पहाडी क्षेत्रो का विकास झलकता था हिमाचल उनका एक प्रदर्शन मंच था पहाडों को जब पत्थरो का ढेर कहा जाता था वहां के जीवन को नरकीय एवं दयनीय जीवन समझा जाता था तब वे पहाडों को देव भूमि तथा यहां की सांस्कृतिक परम्पराओं को देवीय परम्परा का स्वरुप बताते थे यहां के गीतो और नृत्यों में वे जीवन की कला देखते थे और कहते थे जब तक पहाडों में गीत और नृत्य जिंदा रहेगें तब तक पहाड जिंदा रहेगें| वे हिमाचली भोजन ही पसंद करते थे तथा घैंडा सिडकु असकली कांजन की सरहाना करते हुए थकते नही थे वे कहते थे यहां पर घी भारी मात्रा में होता है परन्तु वे खाद्य पदार्थो को तल कर नही खाते थे यहां के लोग ही नही देवता भी नाचते है शिव तो स्वयं नटराज थे उनका कहना था कि पहाडी जीवन दयनीय जीवन नही है अपितु समृद्ध जीवन है हां आधुनिक उपकरणो का सडक सुविधाओं का नई नई तकनीक का उन तक पहुचाया जाना आवश्यक है|मेरे देखते देखते उनहोने सम्पूर्ण हिमाचल में सडको का सर्वे ही नही करवाया बल्कि बहुत हद तक सडकों को बनवाया भी वे कहा करते थे कि सडकें पहाडों की जीवन रेखाएं है| हिमाचली भोजन को वे केवल स्वयं ही नही खाते थे बल्कि मुख्यमंत्री काल में उनके यहां जो भी विदेशी आता था उन्हे वे हिमाचली भोजन खिला कर उसके गुणो से अवगत करवाते थे|

3. हिमाचल विकास की सम्भावनाओं के बारे में उनका क्या विचार था? क्या उनका दृष्टिकोण सफल हुआ?
उनका कहना था हिमाचल भारत का सर्वक्षेष्ट और समृद्ध प्रदेश बनेगा इन सम्भावनाओं को लेकर वे पंडित जवाहर लाल नेहरु राष्टृपति राधा कृष्णन गृह मंत्री लाल बहादुर शाष्त्री से मिलकर विचार विमर्श करते थे वे पहाडी क्षेत्रों के विकास के बारे में लिखी गई पुस्तको को निरन्तर पढते थे और अपने मंत्रियो अधिकारियों के बीच परिचर्चा करते थे उन्हे स्विटजरलैंडं बहुत प्रिय था वे उसी तरह का विकास हिमाचल में देखना चाहते थे उनके दिमाग में विकास की परिकल्प्नाएं उभरती थी वे उन्हे सम्बंधित आधिकारियों के हृदय तक पहुचाने का पूरा प्रयास करते थे| फलतः यहां बाग बगीचों का बेमोसमी सब्जीयों का उत्पादन होने लगा और उनके देखते देखते ही कुछ जिलों के किसान समृद्ध होने लगे| उन्होने विद्युत उत्पादन की रुप रेखा भी निश्चित की उनका कहना था कि हिमाचल अपनी भारी भरकम नदियों से उत्पादन करेगा और स्वाबलंबी ही नही भारत भर में अग्रणी प्रदेश भी बनेगा|उनके द्वारा स्थापित उद्यानिकी एवं वणिकी विश्व विद्यालय विश्व का दूसरा विद्यालय है जो उद्यानों और वनो से सम्बंधित अनुसंधान जन जन तक पहुचाने के लिए स्थापित किया गया है वे नही चाहते थे कि पहाडों पर हल चले मिट्टी बहे वनो का विनाश हो उनका नारा था पहाडों पर हल चलाना पाप है वन नही होगें तो मिट्टी बह जाएगी पहाडी पत्थरो के ढेर पात्र रह जाएगें| पहाडों से बहने वाली नदीयां सतलुज ब्यास रावी चनाब आदि यदि जल से परीपूर्ण रहेगी तो भारत देश समृद्ध रह सकेगा| उन्होने बहुत सारे सकंल्प अपने जीवन काल में पूरे किए यदि उन्हे दस 15 वर्ष और जीवन मिलता तो सम्भतः यह प्रदेश उनकी दिशाओं पर और आगे बढता यद्यपि आज के राजनैताओं ने भी उन्के ही पद चिन्हो पर चल कर प्रदेश को समृद्ध बनाया है आज चल रही विद्युत परियोजनाएं उसका जीवंत उदाहरण है परन्तु जल जंगल और जमीन को सुरक्षित रखने का और अधिक बढाने का काम अभी बाकी है वनो के अभाव में करोडो टन मिट्टी बहती जा रही है वे वृक्षों के बारे मे६ संवेदनशील थे जब घर आकर वन में जाते थे तो उनके हाथ में एक कैंची होती थी और जहां उन्हे पेडों की पेदावार में रुकावट करने वाली टहनी दिखती थी उसे काट डालते थे|

4. आपने कितने वर्ष नौकरी की है? आपका शिक्षा तथा शिक्षको के लिए क्या कहना है?
मैने लगभग 41 वर्ष अध्यापन किया है शिक्षक की भूमिका समाजिक जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है शिक्षक की भूमिका का एक पहलू वहां भी दीखता है जब बच्चा घर में जाकर माता पिता के बताने पर कि दो जमा दो चार होते है यह मानने को तैयार नही होता और कहता है कि हमारी मैडम ने हमें दो जमा दो छः बताए है| वास्तुतः मैडम ने दो जमा दो जमा दो छः बताए होगें| परन्तु उस मानस ने दो जमा दो छः पकड लिया है और माता पिता के बताने पर अपनी मैडम की बात को गलत मानने के लिए तैयार नही है कहते है बच्चा एक कोरी स्लेट होता है| विद्यार्थी जीवन में जो उसके चेतन व अचेतन मन पर अंकित हो जाता है वह जीवन भर उसके साथ रहता है अतः अध्यापक का गुणवान होना सचेतन होना सप्रेषण शक्ति से संपन होना अति आवश्यक है आज के अध्यापक अधिकतर नोकर होते है गुरु नही| गुरु अर्थात अंधेरे को दूर करने वाला यदि अध्यापक केवल उस व्यक्ति की तरह होगा जो रात्री को ठीकारी पेहरा देता है जोर जोर से चिल्लाता है जागते रहो, और चोरी हो जाने पर कह देता है मैं तो सारी रात चिल्लाता रहा चोरी हो गई तो मैं क्या करुं|
गुरु पढाता ही नही दिशा निर्देशन भी करता है श्री तुलसीदास जी की भाषा में
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है घडी-घडी काढे खोट भीतर हाथ सहार दे बाहर मारे चोंट|काश! अध्यापक /गुरु अपने गौरव को पहचानते और गोरवपूर्ण जीवन जीकर देश के भविष्य को जगाते| अध्यापक उसको कहते है जो अध्यन करता है पुस्तको का भी और शिष्य के मन का भी यद्यपि आज भी अध्यापको की कमी नही है काशः की उनका प्रतिशत अधिक होता मै ७४ साल का हो चला हूँ खूब दोडता हूँ खूब बोलता हूँ भारत भर मे भ्रमण करता हँ| कुछ लोग पूछ्ते है कि कैसे सम्भव है तो मै कहता हूँ की जब जब कभी कही अपना शिषय दिखते है और नमन करते है तो वह मुझे एक कतरा खून दे जाते है उसी के सहारे प्रसन्न और भागा भागा फिरता हूँ|

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5. साक्षरता अभियान में आपकी विशेष भागीदारी रही है आपके क्या अनुभव रहे? क्या ऐसे अभियान सार्थक होते है?
साक्षरता अभियान मेरे लिए खूद साक्षर होने का एक कारण बना साक्षर होना केवल पडना लिखना नही था बल्कि परिचर्चा विवाद और संवादों के माध्यम से जन चेतना को जगाना था पडना लिखना तो अक्षर पहचान तथा तीन अंकों की गिनती लिखना मात्र था बाकी तो समग्र रुप से आत्म निर्भर होना ही साक्षर का अर्थ था| बीज और खादों के सम्बंध में हम कहते थे किकोन सा बीज कीस मोसम में बोना है कोन सी खाद किस मात्रा में डालनी है यह सब कुछ लिख पढकर ही याद रह सकता है बिना पढे तो खादो और बीजो के जंजाल में आप उलझ कर रह जाएंगे|
लोगो ने इसे समझा और पढाई के साथ साथ बीजो और खादो की तरफ भी ध्यान दिया| निरक्षर ही नही पढे लिखे लोग भी इस अभियान में साक्षर हुए| जो नही जानते थे उन्हे भी नई नई जानकारियां साक्षरता अभियान में मिली| एक माननीय जिलधीश श्री त्यागी जी राजगढ नोहरा हरिपुरधार संगडाह दौरे पर साक्षर रैलियां करने गए हुए थे संगडाह से आते हुए मार्ग में मुझसे कहने लगे कि साक्षरता अभियान से तो बडा लाभ हुआ मै भी सक्षर हुआ मुझे पता चला कि जनता मै और अधिकारियों में तो बहुत दूरी है|
साक्षरता अभियान की तरह सारे अभियान सार्थक हो सकते है परन्तु अभियानों में कार्यकर्ताओ आधिकारियों एवं जन नैताओं का जुडना अत्यंन्त आवश्यक है नही तो जन अभियान ना रहकर कागजी अभियान मात्र रह जाएगा|यदि ग्रामीण स्तर पर विकास की बात की जाए तो आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए?
हिमाचल के विकास में नदीयों नालो झीलो का विशेष महत्व है परन्तु विकास को यदि घर घर तक पहुचाना है उसके लिए अधिक परियोजनाओं को निष्ठा के साथ किया जाना बाकी है यहां अधिकतर लोग खेती का काम करते है खेती के लिए पर्याप्त जल जंगल जमीन का होना अत्यंत आवश्यक है परन्तु जंगलो का जिस प्रकार से विनाश हो रहा है वह महा प्रलय की कल्पना से कम भयावह नही है यहां के प्रदेश का किसान यदि जैविक खाद से उपजी साग सब्जी और अन की पहचान बाहर दे सकेगा तो वह आत्म निर्भर ही नही सुविधा पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकेगा| पर्यटन की सम्भावनाएं भी यहां अधीक है प्रदेश के किसानो को जापान की तरह स्वतंत्रा बिजली पैदा करने की अनुमति होनी चाहिए वे छोटे छोटे कार्य करे और चीन की तरह कुटिर उद्योग चलाकर देश में ही नही विदेशों में भी अपने पाँव पसार सके| गुजरात की तरह यहां दुग्ध उत्पादन की भारी सम्भावनाएं है बल्कि उससे भी आधीक एक बार मुझे गुजरात में अमूल डैरी देखने का सोभाग्य मिला वहां उस समय नौ लाख लीटर प्रतिदिन इकठ्ठा होता था उसके साथ ११० छोटे संगठन जुडे थे उन्होने हमें लोगो के घरो तक पहुचाया वहां भैंसो को देखकर हमने प्रशन किया कि आप हमे गाय पालने के लिए कहते है और स्वयं भैसे पालते है उन्होने मेरी टोपी को देखा और कहा आप हिमाचली लगते है अगर हमारे पास हिमाचल जैसे सदाबहार हो तो हम आधे भारत को दूध दे सकते है|

6. प्र. कुछ लोग आरोप लगाते है कि डा. परमार अपने क्षेत्र के लिए उतना नही कर पाए जितना वे कर सकते थे|
उ. वैसे तो यह प्रशन ही उत्तर दे रहा है कि उन्होने उतना नही किया जितना कर सकते थे मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए तो वे अपने लिए कोठियां कारे सब कुछ कर सकते थे परन्तु वे अपने लिए घर भी न बनवा सके या उन्होने बनाया नही उस समय उनका एक छ्त्र राज्य था परन्तु वे अपने लिए और अपनो के लिए उतना ही कर पाए जितना हिमाचल के किसी भी व्यक्ति के लिए कर सकते थे यही उनकी महानता थी जिससे हिमाचल अस्तित्व में आया और हिमाचल वासियों ने उन्हे हिमाचल निर्माता का गौरव पूर्ण पद दिया|
मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र देने पर वह नाहन आए हुए थे अपना मकान कोई नही था कालीस्थान के निकट उनके दूसरे लडके ने एक छोटा सा मकान किराय पर लिया हुआ था डा. साहब उसी मकान में ठहरे हुए थे प्रोमिला कुमारी उनकी छोटी पुत्री जम्मू से आई हुई थी
हम दोनो कमरे में चर्चा कर रहे थे प्रोमिला अत्यंत उदास थी कि पिता जी का अपना कोई घर नही है| नीचे चम्बां चौगान में पुलिस बैंड मधुर ध्वनी में ठंडी ठंडी हवा बे चलदी हिलदे चीडां दे डालूवे कि धुन बज रही थी डा. साहब एक हाथ में हजामत का ब्रश और दूसरे हाथ में हजामत का डिब्बा उठाए हुए नाटी का ठुमका लगाते हुए ………….अहा ……….अहा………कहते हुए आए हम दोनो को उदास सा देखते हुए कहने लगे क्या बात हो रही है भाई बहन में| मैने कह दिया रब्बो जी कह रही है कि भाई साहब मुझे शिमला आकर बहुत दुःख हुआ पिता जी स्वयं चाय बना रहे थे और सब्जी भी स्वयं खरीदकर लाये| बेटी रब्बो हिमाचल ऐसे ही नही बनता …… इसके लिए बहुत कुछ त्यागना पड्ता है|
वास्तव में यह सत्य था उन राजनैतिक परिस्थितयों में त्याग उन जैसा महान त्यागी व नैता ही इन पथ्थरो के ढेरो को आदर्श पहाडी हिमाचल का अस्तित्व दे सकता था |
उनका मानना था कि वह अन्य जिलो का विकास करेगें ताकि अन्य राज्यो के प्रतिनिधी भविष्य में सभी जीलों का समान विकास करे| परन्तु यह नही हो सका! दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश में गरीबी के स्तर में सरकारी आंकडो के अनुसार भी दूसरे स्थान पर है| और इसी गरीबी के चलते हजारो सिरमौरी आज भी शिमला व शिमला के आस पास के क्षेत्रो में मजदूरी करके अपना व अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है|

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