धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ के राजेंदà¥à¤° सिंह गà¥à¤°à¥à¤‚ग से à¤à¤• बातचीत| नेपाली कवी, अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• और समाज सेवी मगन पथिक के पà¥à¤¤à¥à¤° राजेंदà¥à¤° सिंह के नाम से कम और à¤à¥‹à¤²à¥‚ के नाम से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जाने जाते हैं
अनूप :सबसे पहले यह बताइये कि कब और कैसे लगा कि संगीत ही सब कà¥à¤› है?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : (याद करते हà¥à¤) यह बात है …. 1976 की। वैसे तो 1975 में जब मैंने कॉलेज में à¤à¤¡à¤®à¤¿à¤¶à¤¨ ली थी, और मैं बी.कॉम में था, तब मैडम शशि शरà¥à¤®à¤¾ थीं (आप जानते ही हैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚)। तो उनका बड़ा पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ रहा। और मासà¥à¤Ÿà¤° चà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€à¤²à¤¾à¤² जी का à¤à¥€ – जो तबले के थे। और इसी बीच में मंडी में à¤à¤• यूथ फेसà¥à¤Ÿà¥€à¤µà¤² हà¥à¤† था। वहाठमà¥à¤à¥‡ बांसà¥à¤°à¥€ के à¤à¤• कलाकार को सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ का सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ मिला …. तो पता लगा कि कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤•à¥€ संगीत कैसे बजाया जाता है बांसà¥à¤°à¥€ में। à¤à¤• रात वे किसी कमरे में बैठकर कनà¥à¤¸à¤°à¥à¤Ÿ कर रहे थे तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ मिला और पवन थापा à¤à¥€ वहीं थे। वे चाहते थे कि मैं उस फà¥à¤²à¥‚टिसà¥à¤Ÿ से मिलà¤à¥¤ वे थे दयाल सिंह राणा जो बाद में à¤.आई.आर रोहतक (रेडियो) में ठगà¥à¤°à¥‡à¤¡ के कलाकार रहे, बांसà¥à¤°à¥€ में। अब तो वह रहे नहीं। तो पहली अनà¥à¤à¥‚ति तो मà¥à¤à¥‡ तà¤à¥€ हà¥à¤ˆ कि बांसà¥à¤°à¥€ में मà¥à¤à¥‡ अब कà¥à¤› करना चाहिà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› टिपà¥à¤¸ à¤à¥€ दिठथे वहाठरहते हà¥à¤à¥¤
अनूप : बस यही पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ था कà¥à¤¯à¤¾?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : नहीं .. और à¤à¥€ बातें थीं। वहाठमैडम ने मà¥à¤à¥‡ आरà¥à¤•à¥‡à¤¸à¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾ में तो शामिल किया ही था और मà¥à¤à¥‡ काफ़ी अधिकार दिया था कि तà¥à¤® सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤‚द उसमें विचरण करो। और मà¥à¤à¥‡ आयडिया à¤à¥€ दो। तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ सचमà¥à¤š बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ किया। आरà¥à¤•à¥‡à¤¸à¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾ राणा जी ने à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾ और हम लोगों को ‘हाइली कमेंडेड’ का पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° à¤à¥€ मिला। तब से मेरी à¤à¤• पहचान बन गई। लोग जानने लगे कि यह है कोई .. (हà¤à¤¸à¤¤à¥‡ हैं)।
अनूप : उससे पहले कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤› à¤à¥€ न था?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : उससे पहले तो मैं वैसे ही फिलà¥à¤®à¥€ गाने या लोक धà¥à¤¨à¥‡à¤‚ या कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤•à¤² बेसà¥à¤¡ फिलà¥à¤®à¥€ गाने बजाता था। या राग के बारे में à¤à¥€ कोशिश करता था पर कोई दिशा नहीं थी। न ही यह पता था कि इसे कैसे करना है। फिर à¤à¤¸à¤¾ हà¥à¤† कि 1976 में हरिवलà¥à¤²à¤ संगीत समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ में (जो देवी तलाब जालंधर में होता है) शशि शरà¥à¤®à¤¾ मैडम हमें ले गईं, à¤à¤• à¤à¤œà¥‚केशनल टà¥à¤…र के रूप में। वह सौ साला उतà¥à¤¸à¤µ था जब नौ दिनों तक दिन-रात कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® चले। तो वहाठजाकर à¤à¤• दूसरी ही दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में पहà¥à¤‚च गया। कैसे कैसे कलाकारों को सà¥à¤¨à¤¾à¥¤ काबà¥à¤² के मà¥à¤®à¥à¤®à¤¦ हà¥à¤¸à¥ˆà¤¨ सारंग बड़े जाने माने गायक थे। फिर पंडित रवि शंकर, विलायत खां साहब, उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ अलà¥à¤²à¤¾ रकà¥à¤–ा, पंडित शामता पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦, किशन महाराज …. यानी à¤à¤¾à¤°à¤¤ के महान रतà¥à¤¨ वहाठआठथे। 1 दिन उनको दिन-रात सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ पर, देखने पर मà¥à¤à¥‡ वाकई लगा कि संगीत तो यह चीज़ है … तो वहीं यह अनà¥à¤à¤µ गहरा हà¥à¤† कि संगीत ही सब कà¥à¤› है।
अनूप : चौरसिया जी से वहीं मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ हà¥à¤ˆ?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : जी हाà¤, पहली बार 76 में वहीं उनको सà¥à¤¨à¤¾à¥¤ 75 में सà¥à¤¨à¤¾ था दयाल सिंह राणा को। और 76 में चौरसिया जी को सà¥à¤¨à¤¾ तो मैं तो बस ….मैसà¥à¤®à¤°à¤¾à¤‡à¤œà¥à¥œ ही रह गया। लगा कि à¤à¤¸à¤¾ दिवà¥à¤¯ संगीत तो हो ही नहीं सकता ! कि यह तो मेरी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤“ं से à¤à¥€ परे है। तो फिर लगा कि मà¥à¤à¥‡ कहां उड़ान à¤à¤°à¤¨à¥€ है, और उसके लिठकितना शà¥à¤°à¤® करना होगा।
यहाठतक मानो ईशà¥à¤µà¤° ही मà¥à¤à¥‡ ले आठ– मानो यह सब किसी पूरà¥à¤µà¤¯à¥‹à¤œà¤¨à¤¾ के तहत था। चà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€ लाल जी के रूप में शायद वही मिला – ईशà¥à¤µà¤° की अंगà¥à¤²à¥€ थी वह। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥ से … हर तरह से …. रियाज़ à¤à¥€ करवाया और सà¥à¤µà¤° की बारीकियाà¤, और मन की बारीकियाठà¤à¥€ कैसे होती हैं – समà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ यह अलग ही तालीम थी।
अनूप : यानी ….
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : मैंने देखा है कि संगीत की तालीम जो सà¥à¤•à¥‚लों में होती है, या किसी संसà¥à¤¥à¤¾ में जाकर – वो काफ़ी नहीं होती। सीखने के लिठà¤à¤• बà¥à¤°à¥‰à¤¡ आउपà¥à¤²à¥à¤• चाहिà¤à¥¤ मेरे गà¥à¤°à¥ चà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€ लाल जी कहते थे।
बंधन में बंदा – खà¥à¤²à¤¾ सा खà¥à¤¦à¤¾ ….
यानी सà¥à¤µà¤° को à¤à¥€ à¤à¤• खà¥à¤²à¥‡ रूप में देखो आप …. और यों जब शà¥à¤°à¥ करवाया उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने … जबकि तब तक मà¥à¤à¥‡ सरगम वगैरेह का काफ़ी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ था … बजा à¤à¥€ लेता था … पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि अब ज़ीरो पर आ जाओ। सब कà¥à¤› à¤à¥‚ल जाओ और अब – स- से शà¥à¤°à¥ करो – उसी की साधना करो और कà¥à¤› नहीं। मà¥à¤à¥‡ याद है कि जब मैं बी.à¤. वन में था, तो वहीं मंदिर में कई बार शंख जैसी आवाज़ गूंजती रहती …. घंटों तक। चार चार घंटे तक बैठकी … फिर आराम … फिर चार घंटे … फिर आराम और फिर दो घंटे। यों दस घंटे तक रियाज़ करता था। à¤à¤• साल तक तो स को ही साधा। यानी धनà¥à¤¨à¥‡ जाट वाली बात कि इसी में à¤à¤—वान है। इससे पहले उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने काफ़ी लेकà¥à¤šà¤° à¤à¥€ दिया मà¥à¤à¥‡à¥¤
यानी किसी à¤à¥€ कला में मन की सà¥à¤¥à¤¿à¤°à¤¤à¤¾ … और उसके लिठà¤à¤• माहौल का होना बड़ा ज़रूरी है। जो कà¥à¤› मिलना था शायद तà¤à¥€ मिला। नहीं तो जितनी जलà¥à¤¦à¥€ मैंने इन चीज़ों को जाना और समà¤à¤¾, और à¤à¤•à¤¦à¤® से लाइम लाइट में आया … वह संà¤à¤µ ही नहीं था।
आप तो जानते हैं कि मैं आम सा आदमी था – à¤à¤• बेहद आईनेरी परिवार से था। बस कà¥à¤› मिलना था मà¥à¤à¥‡ तो जैसे जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के कपाट à¤à¤• साथ खà¥à¤²à¤¨à¥‡ लगे थे। गà¥à¤°à¥ जी ने ही वे खोले थे। यह आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• करामात थी। फिर हम लोग सतà¥à¤¯ साई बाबा के अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ से à¤à¥€ जà¥à¥œà¥‡ थे। उनका à¤à¥€ आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ था। उसी सिलसिले में हमें शिवकà¥à¤®à¤¾à¤° जी जैसे गà¥à¤°à¥à¤œà¤¨ मिले। तब यह अहसास हà¥à¤† कि संगीत में कदम रखना है तो गहरे पैठकर …. सतही ढंग से नहीं …. और गहराई दिखाने वाले à¤à¥€ मिल गà¤à¥¤
अनूप : यानी चà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€ लाल जी …
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤, वे कहा करते … à¤à¥‹à¤²à¥‡ तूं मैनूं à¤à¥à¤² जाणा à¤à¥‡à¤‚। कहते, बताओ आज तेरे साथ है कोई कोई जानता है तà¥à¤à¥‡? …. मैं कहता … नहीं ..। वे कहते कोई टाइम आà¤à¤—ा तू मà¥à¤à¥‡ à¤à¥‚ल जाà¤à¤—ा। उनका खà¥à¤¦ का इतना बड़ा परिवार था, अनेकों दà¥:ख कषà¥à¤Ÿ थे, अकेले कमाने वाले थे। पता नहीं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¤¾ दिखा कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सोच लिया कि इसे मैंने बनाना है।
अनूप : लेकिन आप à¤à¥€ तो समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ रहे।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : शायद हाà¤, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जो कà¥à¤› कहा, मैंने उसे गांठबांध लिया, शत-पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ – बà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤‚डली ….
अनूप : आजकल कहां हैं वे?
à¤à¥‹à¤²à¥‚ : वो अब …. ही इज़ नो मोर … गà¥à¥›à¤° गà¤à¥¤ 2001 में जब मैंने पीà¤à¤šà¤¡à¥€ सबमिट की, उसी बीच पैगाम मिला कि मासà¥à¤Ÿà¤° जी…
अनूप : कहाठथे वे, कहाठसैटल हà¥à¤ थे?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : गà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¸ पà¥à¤° में था न उनका घर। तो बस तब से साधना का कà¥à¤°à¤® जारी रहा। मैं दयाल सिंह राणा के पास à¤à¥€ जाता रहा … लंबा समà¥à¤ª रहा और काफ़ी कà¥à¤› सीखा मैंने उनसे …. कि रागों का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° कैसे करते हैं, लाइट मà¥à¤¯à¥‚ज़िक कà¥à¤¯à¤¾ है। हमारा संबंध 1990 तक रहा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि 1990 में वे गà¥à¥›à¤° गठ– यानी मृतà¥à¤¯à¥à¤ªà¤°à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ ….
अनूप : कहाठहोते थे वे?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° :वे शिमला के à¤à¤• सà¥à¤•à¥‚ल में नृतà¥à¤¯-संगीत सिखाते थे। कà¤à¥€ वे उदयशंकर (रविशंकर के à¤à¤¾à¤ˆ) के टà¥à¤°à¤ª में à¤à¥€ रहे थे – उनसे शिकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ पाई थी और विजय राघव राव जो जाने माने बांसà¥à¤°à¥€à¤µà¤¾à¤¦à¤• हैं उनसे à¤à¥€ सीखे थे। और सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ से मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ उनका सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ मिला। और मैं जगह जगह संगीत के आयोजनों में à¤à¤¾à¤— लेने लगा।
अनूप : और कॉलेज की पà¥à¤¾à¤ˆ?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : चल रही थी। उसमें मैंने संगीत विषय ले लिया – विद सितार इनà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‚ मेंट। यानी 1976 से संगीत की अकादमिक शिकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ पाई। पहले तो मैं कामरà¥à¤¸ में था उसमें (हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ लगते हैं) थोड़ा गड़बड़ हो गया। फिर आरà¥à¤Ÿ सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤® में आया।
अनूप : यानी हमें पता नहीं होता है कि रà¥à¤šà¤¿ कà¥à¤¯à¤¾ है और हमारी दिशा कà¥à¤¯à¤¾ है?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤, वहीं तो … पिता ने जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· के हिसाब से कॉमरà¥à¤¸ दिला दिया। मैंने बदल कर साईंस ले ली – वह à¤à¥€ …. यानी 1976 के बाद जाकर सही दिशा मिली कि मैंने कà¥à¤¯à¤¾ करता है। तो फिर यहाठगà¥à¤°à¥ˆà¤œà¥à¤à¤¶à¤¨ की। फिर जब बाबा जी के पास गठतो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤®.ठकरने को कहा। मैं तो चाहता था कि चौरसिया जी के पास चला जाऊà¤à¥¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस बीच मेरी 1978 में उनसे फिर मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ हà¥à¤ˆ थी, जालंधर में। मैेंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बांसà¥à¤°à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤•à¤° पूछा कि बताइये मैं इस लाइन में आगे जा सकता हूं या नहीं।
उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बड़े पà¥à¤°à¥‡à¤® से मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤•à¤¾à¤ˆà¤²à¤¾ हॉटेल में बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾, वहां सà¥à¤¨à¤¾ और कहा कि तà¥à¤® में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ है, पूंà¤à¤• अचà¥à¤›à¥€ है – मगर तà¥à¤® गायन सीखो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि संगीत में गायन बड़ा पà¥à¤°à¤®à¥à¤– होता है। à¤à¤¾à¤µ की अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ उसी से होती है। फिर संगीत में शबà¥à¤¦ à¤à¥€ होते हैं, अचà¥à¤›à¤¾ गायन जानने वाला वादन के साथ अचà¥à¤›à¥€ तरह तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर सकता है।तो मैंने उनकी बात सà¥à¤¨à¥€à¥¤ फिर सतà¥à¤¯ साईं बाबा ने 1979 में जब कहा – ”तà¥à¤® मà¥à¤¯à¥‚ज़िक में à¤à¤®.à¤. करता है”। तो मैंने यह ठान ली कि यही करूंगा। और ईशà¥à¤µà¤° कृपा से चौरसिया जी फिर 1979 में, होलियों में अमृतसर के दà¥à¤°à¥à¤—याना मंदिर की राग सà¤à¤¾ में मिले।
अनूप : यह संयोग कैसे हà¥à¤†?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : मेरी à¤à¤• विदेशी शिषà¥à¤¯à¤¾ थी, मà¥à¤¯à¥‚रियल नाम था उसका, फà¥à¤°à¥‡à¤‚च थी। वह मà¥à¤‚बई गई थी और जाने से पहले उसने चौरसिया जी का à¤à¤¡à¤°à¥‡à¤¸ मांगा। मेरे साथ उनका विजिटिंग कारà¥à¤¡ था ही, मैंने उसे नंबर वगैरेह दिया था। वह वहीं रà¥à¤•à¥€ उनके पास … उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उसे बहà¥à¤¤ इनà¥à¤¸à¤ªà¤¾à¤¯à¤° किया। पूछा à¤à¥€ कि गà¥à¤°à¥ कौन हैं। उसने मेरा नाम लिया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि अपने गà¥à¤°à¥ को बताना कि होलियों में अमृतसर आऊà¤à¤—ा, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लेकर आना। यों वह लौटी और बोली कि आज ही चलना है पाà¤à¤š बजे की बस से पठानकोट, और फिर अमृतसर ….. चौरसिया जी ने बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ है। रात को पहà¥à¤‚चे तो पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® खतà¥à¤® हो गठथे पर अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ ही चौरसिया जी से मिलने गà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि कà¥à¤› सà¥à¤¨à¤¾à¤“। मैंने बजाया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤²à¤¾à¤¬à¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ करने के बाबत टिपà¥à¤¸ दिà¤à¥¤ फिर पूछा कि वह वह गायन की तालीम का कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†à¥¤ मैंने कहा कि मैं धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ जैसी जगह पर रहता हूं, अपनी कहिठकà¥à¤¯à¤¾ करूं – मारà¥à¤— आपही दिखाइये।
अनूप : हां धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में तो शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ संगीत की वैसी कोई परंपरा थी नहीं?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° – हां, à¤à¥Œà¤—ोलिक परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में कैद था। तो फिर चौरसिया जी ने गà¥à¤°à¥ शंकर लाल मिशà¥à¤°à¤¾ का रेफ़ेरेंस दिया। वे इलाहाबाद के थे और उनके शागिरà¥à¤¦ शहनाई वादक à¤à¥‹à¤²à¤¾à¤¨à¤¾à¤¥ थे। चौरसिया जी शà¥à¤°à¥ में उनके शिषà¥à¤¯ रह चà¥à¤•à¥‡ थे और शंकरलाला मिशà¥à¤°à¤¾ जी को à¤à¥€ दादा गà¥à¤°à¥ के रूप में मानते थे। तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• रà¥à¤•à¥à¤•à¤¾ उनके नाम लिखकर मà¥à¤à¥‡ मिलने को कहा। लिखा कि ‘इसे à¤à¥‡à¤œ रहा हूं, संगीत में सचà¥à¤šà¥€ रà¥à¤šà¤¿ है, बांसà¥à¤°à¥€ अचà¥à¤›à¥€ बजाता है, गायन की तालीम आप दीजिà¤à¥¤ बाद में मैं इसे गाइड करूंगा ….’ यों रà¥à¤•à¥à¤•à¤¾ लेकर मैं उनसे मिला।
अनूप : इलाहाबाद ग�
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : नहीं, इधर ही जालंधर में। वे à¤.पी.जे. फाइन आटà¥à¤°à¥à¤¸ कॉलेज के पà¥à¤°à¤¿à¤‚सिपल थे और गà¥à¤°à¥ नानक देव यूनिवरà¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¥€ में फैकलà¥à¤Ÿà¥€ ऑव फाइन आरà¥à¤Ÿà¥à¤¸ के डीन थे। तो जब चौरसिया जी की रिकमेंडेशन हो, शंकर लाल मिशà¥à¤° जैसे नानी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने à¤à¥‡à¤œà¤¾ हो तो फीलà¥à¤¡ खà¥à¤¦ ब खà¥à¤¦ बनता जाता है। और वह बनता गया। पंजाब और आसपास के इलाकों के संगीत के लोगों से जà¥à¥œà¤¨à¥‡ लगा।
यों जो मिला, शायद मिलना था मà¥à¤à¥‡à¥¤ और गहरे से मिला – गहरे उतरा, उतारने वाले à¤à¥€ मिले। चमतà¥à¤•à¤¾à¤° ही समà¤à¥‹ इसे।
अनूप : अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ की तरफ कैसे आना हà¥à¤†?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : मिशà¥à¤°à¤¾ जी ने ही कहा कि गà¥à¤°à¥‡à¤œà¥à¤à¤¶à¤¨ किया है तो à¤à¤®.à¤. à¤à¥€ कर लो, नौकली के लिठअचà¥à¤›à¤¾ रहेगा। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि जीवन à¤à¥€ तो चलाना है। सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤—ल करने के लिठपेट में रोटी à¤à¥€ तो चाहिà¤à¥¤ याें à¤à¤®.à¤. की, à¤à¤®.फिल की … साथ साथ उनसे तालीम लेता रहा।
अनूप : तालीम के बारे में बताइये कà¥à¤›?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : जालंधर में ही बनारस घराने के à¤à¤• सितारवादक थे – वीरेनà¥à¤¦à¥à¤° सर – जो सितार की कà¥à¤²à¤¾à¤¸ लेते थे। वे विलायत खां साहब के शारà¥à¤—िद थे। à¤à¤®.à¤. में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ और उनसे मैंने वादन अंग को समà¤à¤¾à¥¤
अनूप : वादन अंग —?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सितार में à¤à¤• बीच अंग होता है, वीणा के सà¥à¤°à¥‹à¤‚ की तरह, धà¥à¥à¤°à¤ªà¤¦-धमार की तरà¥à¥› पर। पहले तो गायन ही होता था ना ! उसी को वीणा ने फौलो किया। तो बीन अंग की चीज़ें जैसे धà¥à¤°à¥à¤ªà¤¦ में नामे तोम का विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ आलाप होता है, उसके बाद कंपोज़ीशन गाते हैं। सितार ने à¤à¥€ खà¥à¤¯à¤¾à¤² अंग को अपनाया था – नामे तोम, जाड़े आलाप, जाड़े इपाला करके विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ आलाप होता था। किसी राग की अवतारणा के लिठà¤à¤• घंटा यह चाहिà¤à¥¤ तो उनसे वादन अंग टेकनीक, बीन अंग की, धà¥à¤°à¥à¤ªà¤¦ अंग की सीखने का मौका मिला।
फिर सीखने की यह पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤°à¥‚म तक तो सीमित थी नहीं। उनकी à¤à¤¤à¥€à¤œà¥€ à¤à¥€ पà¥à¤¤à¥€ थी। बहà¥à¤¤ टैलेंटेड थी। अकà¥à¤¸à¤° उनके घर चले जाते थे, उनके पिता ओम पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ खà¥à¤¦ लेकà¥à¤šà¤°à¤° थे कनà¥à¤¯à¤¾ महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में। तो वहां à¤à¥€ संगीत का माहौल था। फिर उनमें à¤à¤• हरविंदर थे। बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ सितार बजाते। वे à¤à¥€ विलायत खां से सीखे थे। अब तो ठकà¥à¤²à¤¾à¤¸ आरà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ हैं। पहले वे कालà¥à¤•à¤¾ में थे।
सो कहने का मतलब यह कि वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¤Ÿà¤®à¤¸à¤«à¥‡à¤¯à¤° से सीखता है। à¤à¤• खà¥à¤²à¤¾ वातावरण था। à¤.पी.जी कॉलेज का बड़ा नाम था। ओमपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ थे, गिरिजा वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ थीं, विरजू महाराज के à¤à¤¾à¤‚जे वहीं थे। बनारस से दो बड़े तबलावादक थे। तो माहौल ही रात दिन संगीत का था। कॉलेज में कà¤à¥€ फोक तो कà¤à¥€ कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤•à¤² कनà¥à¤¸à¤°à¥à¤Ÿ चला करते।
अनूप : आप बड़े पते की बात कह रहे हैं।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : और हरिवलà¥à¤²à¤ समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ तो होता ही था। यों दिमाग खà¥à¤² गया मेरा …. मेरे गà¥à¤°à¥ जी कहते (चà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€à¤²à¤¾à¤² ‘à¤à¥‹à¤²à¥à¤²à¥‡ ! à¤à¤¦à¥à¤¦à¤¾à¤‚ ठन, जे हलà¥à¤²à¤¾à¤¶à¥‡à¤°à¥€ बहà¥à¤¤ वॅडी चीज़ हà¥à¤‚दी ऒ। अगर किसी से कहें कि ओठडूब गया, डूब गया…. तो वह डूब जाता है और कहें कि – शाबाश – लांघ गया … ठलांघ गया … तो वह लांघ जाता है। तà¤à¥€ वे मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया करते। कहते ”तूं चौरसिया नाल बजाऊंगा। यार कई बार तो तेरे सà¥à¤° इतने बारीक लगते हैं कि कà¥à¤¯à¤¾ कहूं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जैसे अपना सब कà¥à¤› नà¥à¤¯à¥Œà¤›à¤¾à¤µà¤° कर दिया मà¥à¤ पर। रात रात रियाज़ कराते थे। यहीं नीचे शामनगर में विमला निवास में रहते थे। किसी से à¤à¥€ बात करते तो मेरा जिकà¥à¤° करने लगते। लोग कहते – यार तूं à¤à¥‹à¤²à¥à¤²à¥‡ दी गॅल ला छॅडदां, कोई हारे गल कर। मà¥à¤à¥‡ कहते यार तू लता ताल बजाऊंगा à¤à¤• दिन। देख लई, ज़ाकिर नाल बजाऊà¤à¤—ा।
अनूप : आपका हौसला सदा ऊà¤à¤šà¤¾ रखते थे।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हां, मंज़िल ही ऊंची दिखाते थे। उरे तो देखने ही नहीं दिया। गà¥à¤°à¥ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ को तलाशता है, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तो फिर सà¥à¤µà¤¤: ही आता है। सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡, देखते हà¥à¤, बातें करते हà¥à¤à¥¤ बताइये à¤à¤•à¤²à¤µà¥à¤¯ ने कहाठà¤à¤• à¤à¤• चीज़ की शिकà¥à¤·à¤¾ पाई थी। बस शà¥à¤°à¤§à¥à¤¦à¤¾ और गà¥à¤°à¥ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ समरà¥à¤ªà¤£ – इमà¥à¤ªà¥à¤²à¥€à¤¸à¤¿à¤Ÿ केथ के à¤à¥€à¤¤à¤° से आ जाठइचà¥à¤›à¤¾ ज़रूर पूरी होती है।
अनूप : इसकी कोई मिसाल?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : वे कहते मैं काला, मेरी जà¥à¤¬à¤¾à¤‚न काली। मैं जो कहता हूं, होगा। कहा कि अगले साल तू बचाà¤à¤—ा हरिवलà¥à¤²à¤ समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ में। मैं अविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ से कहता – मैं !!! मैं तो जाणदा ई कख नई ! इतनी बड़ी सà¥à¤Ÿà¥‡à¤œ जहाठलोगों को देख सिर शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से à¤à¥à¤• जाते हैं – वहां मैं कैसे बजाऊà¤à¤—ा। बोलते – देख लई। मैं काला – मेरी जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ काली।
अनूप : सच हà¥à¤† यह? जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ पूरी हà¥à¤ˆ उनकी?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : बस à¤à¤• साल पूरी मेहनत की। शाम नगर के उनके घर का दरवाज़ा तीन-साà¥à¥‡ बजे खटका देता। चाय खà¥à¤¦ बनाता। सà¥à¤¬à¤¹ के सात साà¥à¥‡ सात तक अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ करता। फिर वे à¤à¥€ कॉलेज के लिठतैयार होते, मैं à¤à¥€à¥¤ फिर 77 में हर वलà¥à¤²à¤ में यà¥à¤µà¤¾ कलाकारों की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता में बजाया ( अब à¤à¥€ होती है विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ आयॠसà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ पर) तो 77-78 में मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ पदक मिला। और उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ के उस महान आयोजन के मंच पर बैठने और पदक पाने की हवा बन गई। हिमाचल-पंजाब-हरियाणा और दिलà¥à¤²à¥€ तक à¤à¥€ लोग, संगीत जगत के, पहचानने लगे। चौरसिया जी का वरद हसà¥à¤¤ à¤à¥€ मिला था।
अनूप : बाकी पà¥à¤¾à¤ˆ पर इसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ नहीं पड़ा?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : मैं नहीं जानता कि कैसे मैं पार उतर आया। कैसे इंगà¥à¤²à¤¿à¤¶ में पास हà¥à¤†, कैसे हिसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ के समà¥à¤¦à¥à¤° में तैर गया। शायद यह शिवकà¥à¤®à¤¾à¤° जी का पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª था। वे कहते बस गà¥à¤°à¥‡à¤œà¥à¤¯à¥à¤à¤¶à¤¨ कर लो फिर संगीत में अपने हिसाब से बà¥à¤¤à¥‡ रहना। चà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€ लाल जी à¤à¥€ कहते-पॠजा, पॠजा, तूं ता पॠजा। मैं तो अनपॠहूं। मेरे मन में à¤à¥€ यह गरà¥à¤µ नहीं आया कि मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤¯à¤¾ ज़रूरत है कि मैं यह रà¥à¤–े विषय पढà¤à¥¤
अनूप : चà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€ लाल जी औरों को à¤à¥€ सिखाते थे?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤, गà¥à¤°à¥ जी ने संगीत विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ चलाया था – ‘कॉसà¥à¤®à¤¿à¤• मà¥à¤¯à¥‚ज़िक सà¥à¤•à¥‚ल’ विदेशी आते उसमें। 76 तक तो मैं à¤à¥€ रहा, उसके बाद à¤à¥€ वे चलाते रहे। मैं पà¥à¤¨à¥‡ चला गया। पहले बांसà¥à¤°à¥€ और सितार विदेशियों को सिखाता था। सोचिठकितनी जलà¥à¤¦à¥€ पिकअप किया होगा कि दूसरों को सिखाने लगा। गà¥à¤°à¥ जी कहते टीचिंग से बहà¥à¤¤ कà¥à¤› आता है। सोचिठà¤à¤• अनपॠवà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का कà¥à¤¯à¤¾ विज़न था। कहते इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤¾à¤•à¤° तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ आ जाà¤à¤—ी, तà¥à¤®à¤¨à¥‡ तो आगे बà¥à¤¨à¤¾ है, à¤à¥à¤°à¤®à¤£ करना है। à¤à¤¿à¤à¤• मिटाने के लिठउसी परिसर में शनिवार को कनà¥à¤¸à¤°à¥à¤Ÿ रखा करते। मीनू कॉटेज में, तिबà¥à¤¬à¤¤à¥€ लायबà¥à¤°à¥‡à¤°à¥€ के नीचे-काई 30-35 कमरे थे जहाठविदेशी रहते। कहीं मैं à¤à¥€ सितार-बासà¥à¤‚री की ककà¥à¤·à¤¾à¤à¤ लेता, परफारà¥à¤® à¤à¥€ करता। कैसा बजाता था पता नहीं …. पर ठीक ही रहा होगा … (हà¤à¤¸à¤¤à¥‡ हैं)
अनूप : तà¤à¥€ तो लोग आते à¤à¥€ थे।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : इससे à¤à¥€ à¤à¤• पहचान बनीं, कि यह तो विदेशियों को सिखाता है। जैसे दरà¥à¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾ मंदिर अमृतसर में मà¥à¤¯à¥‚रियल को देखकर à¤à¤• तबला वादक उठखड़े हà¥à¤à¥¤ मà¥à¤à¥‡ बड़ा उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ मान बैठे और बोले ! आइये आइये उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ जी ….
अनूप : तो इस सफ़र में कई सरपरसà¥à¤¤ रहे?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤, 74 में हायर सेकेंडरी के बाद ही यह सिलसिला चल पड़ा था। जब मैंने पूछने पर पिता से कहा कि संगीत सीखना चाहता हूं। पहले पहल देशबंधॠजी से, फिर उनके शिषà¥à¤¯ कृषà¥à¤£à¤¦à¤¤à¥à¤¤ शरà¥à¤®à¤¾ से। फिर कोटखाई चले गठऔर बहà¥à¤¤ अरà¥à¤¸à¥‡ बाद लौटे। और फिर शंकरलाल मिशà¥à¤°à¤¾ मिले, वीरेनà¥à¤¦à¥à¤° सर मिले, और मिले जालंधर रेडियो के शहनाई वादक शाम लाल। उनके पिता नंदलाल जी बिसà¥à¤®à¤¿à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¹ खां के समकालीन थे। खां साहब को तो बड़ा नाम मिला, वे शहनाई के परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ ही बन गà¤à¥¤ लेकिन नंदलाल जी à¤à¥€ उसी सà¥à¤¤à¤° के थे। पर नाम – यश तो ईशà¥à¤µà¤° के हाथ में है।
अनूप : आप शाम लाल जी के बारे में कह रहे थे।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤, तो शामलाल जी à¤à¥€ बड़े à¤à¤²à¥‡ मानà¥à¤¸, बड़े सजà¥à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¥à¤· थे। उनसे मिलने पर सà¥à¤¶à¤¿à¤° वादà¥à¤¯ की जो फूंक की टेकनीक होती है, वह उनसे सीखी। वे मेरे घर आ जाते, टूटी मंजी और बैठकर सिखाते, इतवार को à¤à¥€ आ जाते। कहते यह तूने कà¥à¤¯à¤¾ कर दिया है मेरे अंदर। लोग तो मिठाई लेकर आते हैं घर कि कà¥à¤› बताइये और हम नहीं सिखाते और तेरे लिठखà¥à¤¦ जाता हूं।
अनूप : तो कà¥à¤¯à¤¾ यह था यह जो गà¥à¤°à¥à¤“ं की इतनी मेहरबानी हà¥à¤ˆà¥¤
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : शायद मैं विनमà¥à¤° था – कह नहीं सकता। उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के कहने पर मैंने 88 में रेडियो का अडिशन दिया ! और पास à¤à¥€ हà¥à¤† ! उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पूरा पहरा, पूरी कांट छांट के साथ तैयारी करवाई और फिर दिलà¥à¤²à¥€ में à¤à¥€ ऑडिशन हà¥à¤ˆà¥¤ रेडियो पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® मिलने लगे। मà¥à¤à¥‡ साल में चार पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® मिलते थे। मैं बी.हाई. गà¥à¤°à¥‡à¤¡ का था।
अनूप : गà¥à¤°à¥‡à¤¡ उससे आगे बà¥à¤¾?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : नहीं मैंने कोशिश ही नहीं की। पारिवारिक परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤, दूसरे à¤à¤®à¥‡à¤²à¥‡, नौकरी à¤à¥€ बदलती रही। पहले धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ कॉलेज, किर सेंटà¥à¤°à¤² सà¥à¤•à¥‚ल डलहौजी, गरà¥à¤²à¥à¤¸ सà¥à¤•à¥‚ल और अब पालमपà¥à¤° में हूं।
अनूप : शिमला में यà¥à¤µà¤¾ कलाकार के रूप में रजिसà¥à¤Ÿà¤° होने और जालंधर में आरà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ के बतौर तो आप बजाते रहे। रेडियो के अलावा à¤à¥€ कनà¥à¤¸à¤°à¥à¤Ÿ करते हैं?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाठवे तो चलते रहे। जैसे नामधारियों का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® होता था। बाबा जगजीत सिंह खà¥à¤¦ बड़े मरà¥à¤®à¤œà¥à¤ž हैं संगीत के। नामधारियों को उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ के पास à¤à¥‡à¤œà¤¤à¥‡ हैं। और à¤à¥€ कई पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® किठहिमाचल, पंजाब में।
अनूप : अब कà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ है?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : संगीत में तब गà¥à¤¡à¤µà¤¿à¤² खतà¥à¤® हो जाती है जब आप दूसरी लाइन में जाते हैं। अब मेरा मà¥à¤–à¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ है। फिर à¤à¥€ जो जानते हैं, बà¥à¤²à¤¾à¤¤à¥‡ हैं। चार पाà¤à¤š साल पहले कà¥à¤› वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• आठथे। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ थोड़े समय में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संगीत की à¤à¤²à¤• देती थी तो फोक के लिठपंजाब से और कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤•à¤² के लिठमà¥à¤à¥‡ बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ था। फिर मैं à¤à¥€ अब सेलेकà¥à¤Ÿà¤¿à¤µ हूं। और कला सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤:सà¥à¤–ाय तो है ही।
लेकिन अगर टीचिंग में न होता – कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® करके ही जीविका चलानी होती तो बात अलग होती। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तो है, उसका मंथन तो किया करता हूं। मà¥à¤à¥‡ कमी का अहसास नहीं होता – तसà¥à¤µà¥€à¤° समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ लगती है। लेकिन आगे à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ की बात होती है।
अनूप : मैं सीधे सीधे ही पूछना चाहता हूं, कि जितना आपने सीखा है, जितना बजाया है कि अगर आप हिमाचल में न होकर किसी बड़े शहर में होते तो आपका सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ कà¥à¤› और होता।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° – हाà¤, यह तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ….
अनूप :जब हम à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ की बात करते हैं तो इसका संबंध कहीं छोड़ देने से तो नहीं है। अगर आप बड़े शहरों में जाने की सोचते । नौकरी की तलाश पंजाब या फिर दिलà¥à¤²à¥€ में करते तो मौके जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मिलते। और जानना चाहà¤à¤—ा कि ऊà¤à¤šà¤¾ कलाकार और नामी कलाकार …. इसमें कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥‡à¤¦ है।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : नाम, यश, मान … सब ईशà¥à¤µà¤° के हाथ में होते हैं।
अनूप : ईशà¥à¤µà¤° के हाथ में या बाज़ार के हाथ में?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : बाज़ार के हाथ में à¤à¥€ होते हैं पर फिर पारिवारिक परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¥€ तो होती हैं। आदमी अपने लिठचà¥à¤¨à¤¾à¤µ à¤à¥€ तो करता है। à¤à¤—वान ने जो अंकà¥à¤¶ लगाठहैं – उनका इशारा à¤à¥€ तो समà¤à¤¨à¤¾ होता है। और फिर संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ की बात होती है … जब आवै संतोष धन … सब धन धूरि समान
अनूप : मैं इसलिठपूछना चाहता हूं कि …
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : समà¤à¤¤à¤¾ हूं, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की कई मंज़िलें तय की हैं, छू-परख के देखा à¤à¥€ है। मगर यह अफसोस नहीं कि चौरसिया जी जैसा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बना। उससे आगे कà¥à¤¯à¤¾ है – उनके साथ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤œ पर बैठकर à¤à¥€ देखा है। उनकी आà¤à¤¾-उनकी गरिमा की छाया à¤à¥€ देखी है। शायद बाबा जी के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ के कारण वैसी डिज़ायर, वैसी मृगतृषà¥à¤£à¤¾ नहीं है। à¤à¤¾à¤—ने की इचà¥à¤›à¤¾ नहीं … ठीक है … à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ में नहीं होगा शायद…कोई नहीं …अगले जनà¥à¤® में सही। à¤à¤¸à¥€ आसà¥à¤¥à¤¾ à¤à¥€ है।
अनूप : कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मà¥à¤à¥‡ à¤à¥à¤°à¤® होता है कि कहीं à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• कारण à¤à¥€ है। जैसे शिवकà¥à¤®à¤¾à¤° शरà¥à¤®à¤¾ जी (संतूर) काशà¥à¤®à¥€à¤° से उठे। मà¥à¤‚बई तो मायानगरी है फिर à¤à¥€ सब कलाकार वहीं रहते हैं। चौरसिया जी, ज़ाकिर हà¥à¤¸à¥ˆà¤¨, जसराज। हाठजोशी जी पूना में रहे। मà¥à¤‚बई संगीत का बड़ा गॠरहा है। रिकारà¥à¤¡ से लेकर कैसेट- सब वहीं से जारी होते हैं। इन चीज़ों का à¤à¥€ तो संबंध होता है कला और कलाकार से?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : वह तो है, कौन नहीं चाहता कि मैं पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤§à¥à¤¦ हो जाऊà¤, रिकारà¥à¤¡ हों, लेकिन उसके लिठअनà¥à¤•à¥‚ल à¤à¤¸à¥‡ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ में कà¥à¤› खोना à¤à¥€ तो पड़ेगा। आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ हमें सिखाती है कि नाम यश से कà¥à¤¯à¤¾ हो जाà¤à¤—ा ! मानसिक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ के आधार पर चाहतें होती हैं। पंडित रविशंकर अंतिम नहीं हैं। उनमें से à¤à¥€ बड़े विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ होंगे – हैं à¤à¥€ जो चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª जीवन गà¥à¥›à¤¾à¤° रहे है। उनकी विदà¥à¤¯à¤¾ में, उनके रियाज़ में कोई कमी नहीं। हाà¤, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वे अवसर नहीं मिले जो मिलने चाहिठथे। तो कà¥à¤¯à¤¾ करें।
अनूप : दूसरा पहलू यह है कि जैसे जालंधर में हरिवलà¥à¤²à¤ होता है – पहाड़ी पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में इस तरह की कोई परंपरा बन सकती है।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : छिटपà¥à¤Ÿ परंपराà¤à¤ बनी à¤à¥€ हैं। मैं जब जालंधर गया तो वहाठसà¥à¤‚दर नगर के à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ मिले – गंगाराम – हेड मासà¥à¤Ÿà¤° रिटायर हà¥à¤ थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वहाठसंगीत का à¤à¤• विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ बनाया और हर साल पं. विषà¥à¤£à¥ दिगंबर जयंती मनाते हैं। उसमें अचà¥à¤›à¥‡ कलाकारों को बà¥à¤²à¤¾à¤¤à¥‡ हैं जो उनके समà¥à¤ª में हैं । यथाशकà¥à¤¤à¤¿ पतà¥à¤° पà¥à¤·à¥à¤ª à¤à¥€ à¤à¥‡à¤‚ट करते हैं। 1980 में मैं वहां बजा कर आया हूं फिर 86 में फिर गया। तो वह कई सालों से यह हो रहा है।
अनूप : अà¤à¥€ à¤à¥€?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤à¥¤ और धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में à¤à¥€ हिमाचल शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ संगीत सà¤à¤¾ का गठन हो चà¥à¤•à¤¾ है। कोई दस साल तो शायद हो चà¥à¤•à¥‡ हैं। तो हो रहा है यहाठà¤à¥€à¥¤ हर महीने के दूसरे शनिवार को चामà¥à¤‚डा परिसर में यह होता है। दस बारह या पंदà¥à¤°à¤¹-बीस लोग जो à¤à¥€ होते हैं वे दो-तीन बजे तक गाते बजाते हैं। और मà¥à¤à¥‡ याद है कि जब हम शà¥à¤°à¥ शà¥à¤°à¥ में (96-97 में) à¤à¤• शिवमंदिर था, वहाठपर शिवरातà¥à¤°à¤¿ को कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® होता था। वहाठà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ लोग थे à¤à¤—वंत जी, पाधा जी, पंडित अमरनाथ कथा वाचक ….। यों इस सब का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ देशबंधॠजी को जाता है। वे 50 में जब धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ आठथे तब कांगड़ा के कथावाचकों ने संगीत का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° किया।
अनूप : वह कैसे? खोल कर बताइये ज़रा।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : कथावाचक अपने आप में à¤à¤• रंगमंचीय कलाकार à¤à¥€ होता था और गायक à¤à¥€à¥¤ सब गà¥à¤£ होते थे उसमें तà¤à¥€ तो कई कई घंटों तक बाà¤à¤§ कर रखते थे लोगों को। à¤à¤• दीनानाथ होते थे कांगड़ा डà¥à¤°à¤¿à¤¸à¥à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤•à¥à¤Ÿ में। उनके जितने à¤à¥€ जजमान थे, सबके घरों में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• पेटी और तबले की जोड़ी रखवाई थी। वे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ ढंग से संगीत का सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ-अंतरा गाते, जितनी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ज़रूरत थी बतौर कथा वाचक के। फिर दà¥à¤—à¥à¤£ – चौगà¥à¤£ करते। तानें वगैरेह नहीं लेते थे। जब देशबंधॠशरà¥à¤®à¤¾ जी लाहौर से यहाठआठतो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने खà¥à¤¯à¤¾à¤² गायकी का काफ़ी पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° किया। इसके पहले दीनानाथ जी, पंडित अमर नाथ वगैरेह जो कथावाचक थे वे तो बकायदा तान-पलटों के साथ गाते थे। मैंने à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾ है उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ – उनका सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ à¤à¥€ पाया है।
अनूप : आप संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ है इससे।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : नहीं, वह तो नहीं हूं। हà¥à¤† तो है यहाठपर कà¥à¤› कà¥à¤› पर उस सà¥à¤¤à¤° तक तो नहीं हà¥à¤† जितना होना चाहिठथा। सीमित सा ही है। और जो है – उसका à¤à¥€ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° बहà¥à¤¤ कम होता है।
अनूप : कà¥à¤¯à¤¾ यहाठके कà¥à¤› लोग हैं जो संगीत में निकल रहे हों? कोई पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ हो, कमिटमेंट हो?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : देखिठकà¥à¤› यà¥à¤— ही बदल गया है। लोग चाहते हैं कि जलà¥à¤¦à¤…ज़ जलà¥à¤¦ हम इंडियन आइडल बन जाà¤à¤à¥¤ संगीत के आधारों की तरफ़ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ कम है। जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤¾ है, और समà¤à¤•à¤° कर रहे हैं, वो अलग बात है।जैसे à¤à¤• रैत साइड का लड़का था। लेकिन अधिकतर तो यह à¤à¤• बिज़नेस सा हो गया है। तालीम मिल रही है या नहीं – इस पर पà¥à¤°à¤¶à¤¨à¤šà¤¿à¤¨à¥à¤¹ है।
अनूप : यहाठसà¥à¤•à¥‚ल कॉलेजों में तो संगीत विषय है ही?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤, है।
अनूप : पर वहाठसे पà¥à¤•à¤° निकलने वाले आगे जा पाते हैं?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : देखिठà¤à¤• होती है गà¥à¤°à¥ शिषà¥à¤¯ परंपरा … लेकिन सà¥à¤•à¥‚ल कॉलेज में समय के बंधन होते हैं। मैंने à¤à¥€ पà¥à¤¾ है वहाà¤à¥¤ अगर वहीं तक सीमित रहता तो कà¥à¤¯à¤¾ हो पाता। 40 मिनट के à¤à¤• पीरियड में कई बार साज़ को टयून करते ही समय समापà¥à¤¤ हो जाता है। और फिर à¤à¤• बंदिश, दो चार तोड़े, थोड़ा सा कनà¥à¤•à¥à¤²à¥‚डिंग पोरà¥à¤¶à¤¨ … और à¤à¤• राग खतà¥à¤® हो गया। सेलेबस के हिसाब से तो कई राग हो जाते हैं पर वह तो à¤à¤• आउटर सà¥à¤•à¥‡à¤š जैसा ही होता है।
अनूप : आप को पà¥à¤¾ के संतोष होता है?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : इनमें कई बचà¥à¤šà¥‡ जिनमें पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ होती है, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समय देते हैं।यूथ फेसà¥à¤Ÿà¥€à¤µà¤² की तैयारियाठहोती हैं। हरिवलà¥à¤²à¤ à¤à¥€ जाते हैं। à¤à¤•à¥à¤¸à¤Ÿà¥à¤°à¤¾ टाइम à¤à¥€ देते हैं। पर पूरी कà¥à¤²à¤¾à¤¸ के साथ यह संà¤à¤µ नहीं है। यह विषय à¤à¤¸à¤¾ है कि इसमें रà¥à¤šà¤¿ वाले सेलेकà¥à¤Ÿà¤¡ छातà¥à¤°-छातà¥à¤°à¤¾à¤à¤ होने चाहिà¤à¥¤
अनूप : आज जालंधर में ंसगीत संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में पà¥à¥‡ हैं, à¤à¤¸à¥‡ किसी संगीत विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की जरूरत है यहाà¤?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : हाà¤, ज़रूरत तो बहà¥à¤¤ है हिमाचल में। संगीत ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚, और à¤à¥€ ललित कलाओं के लिठ(नाटय, चितà¥à¤°, नृतà¥à¤¯ …..) कोई à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ ही नहीं है।
पर à¤à¤¸à¥€ संसà¥à¤¥à¤¾ बने तो पॉलीटिसाइज़ न हो जाà¤à¥¤ कि देखने को तो à¤à¤µà¤¨ हो, पर à¤à¥€à¤¤à¤° कà¥à¤› न हो। या उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ वह न हो। उनमें वही लोग होने चाहिठजिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उसमें अपना जीवन लगाया है। समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ लोग न होंगे तो कैसे चलेगा।
अनूप : अचà¥à¤›à¤¾ यह बताइये कि आजकल रियाज़ की कà¥à¤¯à¤¾ रà¥à¤Ÿà¥€à¤¨ रहती है।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : संगीत का तो यह है कि à¤à¤• तो इसका कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• पकà¥à¤· है – पानी धà¥à¤µà¤¨à¤¿ निकालना, à¤à¤• कम धà¥à¤µà¤¨à¤¿ निकालना और à¤à¤• अधà¥à¤µà¤¨à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रियाज़। यानी संगीत का सà¥à¤¨à¤¨à¤¾, चिंतन-मनन à¤à¥€ उसी à¤à¤¾à¤µ धारा में बहना है। लेकिन आजकल कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ के आधार पर रियाज़ चलता है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ à¤à¥€ तो समय की मांग करता है। फिर वहाठà¤à¥€ सितार ही पà¥à¤¾à¤¤à¤¾ हूं। बांसà¥à¤°à¥€ मेरे अपने लिठरह गई है। कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® से 15-20 दिन पहले से अपने को टयून करके उसी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में लाता हूं जहां मैें उसे छोड़ा था। हाà¤, पहले की तरह दस दस घंटे रियाज़ नहीं हो पाता। दूसरी पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾à¤à¤ à¤à¥€ हैं।
अनूप : अचà¥à¤›à¤¾ यह बताइये कि कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤•à¤² संगीत तो शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¬à¤§à¥à¤¦ होता है – पर सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वालों को मà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¥€ करता है। तो उसमें सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¨à¥à¤¦à¤¤à¤¾ कैसे आती है? यह कोई रसायनिक कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ है।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : देखिà¤, रस की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ कब होती है? उसके लिठबहà¥à¤¤ कà¥à¤› चाहिठहोता है। à¤à¤• तो है कलाकार जो रस पैदा करना चाहता है, सà¥à¤Ÿà¥‡à¤œ पर बैठा है, वह किस मन: सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में है, कितनी पकड़, कितना रियाज़ उसमें है। दूसरा शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ है – जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वह पà¥à¤°à¥‡à¤·à¤¿à¤¤ कर रहा है – वे à¤à¥€ उसी सà¥à¤¤à¤° से समठपरा रहे हैं या नहीं। तो शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¥€ कांट छांट होते है। जैसे सà¥à¤ªà¤¿à¤• मैके में बड़े बड़े कलाकार जब कॉलेज के छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के सामने होते हैं तो वहाठवह ज़रूरी नहीं कि कलाकारी और आलापयारी दिखाई जाà¤à¥¤ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को तो लय-ताल सà¥à¤° सबका मिला जà¥à¤²à¤¾ आनंद चाहिà¤à¥¤ तो खà¥à¤²à¥‡ दिमाग और परिपकà¥à¤µà¤¤à¤¾ से ढाल लेंगे संगीत को। कलाकार और शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ की तारतमà¥à¤¯à¤¤à¤¾ से ही रस पैदा होता है। जो गा रहा है, वह दूसरे को समठआ रहा है या नहीं – उसी रूप में गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर रहा है या नहीं। तो जब दोनों में समनà¥à¤µà¤¯ होता है तब डांस की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ आती है। कà¥à¤› à¤à¥‡à¤¦ नहीं बचता। राग की अवतारणा सोची-समà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ नहीं होती कि यह पकड़ है, यह सà¥à¤µà¤°à¤¾à¤µà¤²à¤¿ है, उस समय तो राग का सà¥à¤µà¤°à¥‚प साकार करना है, कà¥à¤°à¤¿à¤à¤¶à¤¨ है न वो तो। शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ à¤à¥€ वहीं चला जाता है। फिर तो आप घंटों बैठे रहिà¤à¥¤
अनूप : जब आप किसी सà¤à¤¾ में बजा रहे होते हैं – तो मन में कà¥à¤¯à¤¾ चल रहा होता है?राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : मन में तो यही चल रहा होता है कि जो à¤à¥€ सà¥à¤µà¤° हो, बीगा हà¥à¤† हो। सचà¥à¤šà¤¾ सà¥à¤µà¤° हो। और तà¤à¥€ सचà¥à¤šà¤¾ होगा जब पॉलिश किया गया होगा। पहरा बैठाया होगा उस पर। साधना की है तो सारे सà¥à¤µà¤° चमके हà¥à¤ होंगे, चाशनी में डूबे होंगे जैसे जीन पर गà¥à¤²à¤¾à¤¬ जामà¥à¤¨à¥¤ जैसे शहद – गाà¥à¤¾ और सà¥à¤¨à¤¿à¤—à¥à¤§à¥¤ गà¥à¤°à¥ जी कहते थे – ”आà¤à¤ ‘स’ नईं ठ– à¤à¥ˆà¤¨à¥à¤¨à¥‚ं तूं राम कह, ओन कह à¤à¤¨à¥à¤¨à¥‚।” फिर यह अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से जà¥à¥œ जाता है। फिर कà¥à¤› चीज़ें जो अनà¥à¤à¤µ करने की हैं – वाणी से नहीं कह सकते हैं। अनà¥à¤à¤µ गमà¥à¤¯ ही हैं।
तेज : लेकिन गायन का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ किन चीज़ों पर है – या अचà¥à¤›à¤¾ गायन कà¥à¤¯à¤¾ है?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : यही कि रियाज़ कैसा है, कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ शकà¥à¤¤à¤¿ कितनी पà¥à¤°à¤–र है, कंपोज़ीशन कà¥à¤¯à¤¾ है कलाकार गा बजा रहा है तो उसमें à¤à¤¾à¤µ कैसे हैं। है तो यह अलग अलग पà¥à¤°à¥à¤œà¥‹à¤‚ की à¤à¤¸à¥‡à¤‚बलिंग ही। à¤à¤¸à¥‡à¤‚बलिंग ‘घड़चà¥à¤š’ कर के तो नहीं कर सकते। बिलà¥à¤•à¥à¤² धीरे धीरे à¤à¤¸à¥‡ मिलाता है कि सारी चीज़ें सà¥à¤®à¥‚दली बैठें। नहीं तो धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ टूटता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है – इसीलिठतो – लय-ताल के कचà¥à¤šà¥‡à¤ªà¤¨ के कारण, या सà¥à¤µà¤° के फीकेपन के कारण। उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ तो वहाठजो बैठे होते हैं, वही होते हैं सब कà¥à¤›à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ही रेटिंग देनी है। शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ ही समीकà¥à¤·à¤• होते हैं। सब का मनोविजà¥à¤žà¤¾à¤¨ समà¤à¤¨à¤¾ होता है। और सचमà¥à¤š होता है यह कि पता ही नहीं चलता कि मैं इधर हूं। डांस की अवसà¥à¤¥à¤¾ में खà¥à¤¦ à¤à¥€ चला जाता है और दूसरे को à¤à¥€ ले आता हैं। जब वादक देखता है कि सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वाले को आननà¥à¤¦ आ रहा है तो आदमी और खà¥à¤ (डूब) जाता है। लेकिन दूसरा घड़ी देख रहा है, इरीटेट हो रहा है तो धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ à¤à¤‚ग हो जाता है।
अनूप : कहते हैं संगीत में शबà¥à¤¦ नहीं होते, विचार à¤à¥€ नहीं होते – या फिर उस पर निरà¥à¤à¤° नहीं होता संगीत। तो यह समाज को कà¥à¤¯à¤¾ देता है।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : सबसे बड़ी चीज़ जो देता है वह है मन का रंजन। कोई à¤à¥€ कला यह करती है। इसीलिठइसे फाइन या लालते कहा जाता है कि मन के सà¥à¤¤à¤° पर सà¥à¤•à¥‚न मिलता है। संगीत में शबà¥à¤¦ हों तो रस परिपाक में मागे देते हैं – पर सचà¥à¤šà¥‡ सà¥à¤°à¥‹à¤‚ का अलग ही आकरà¥à¤·à¤£ होता है। हर सà¥à¤µà¤° की à¤à¤• फà¥à¤°à¥€à¤•à¥à¤µà¥‡à¤‚सी है ना ! स की 240, रे की 270 …टयूनिंग फो से देख सकते हैं। मापे होते हैं। पूरे सचà¥à¤šà¥‡ सà¥à¤µà¤° तो तानसेन के ही हो सकते हैं जिनसे चमतà¥à¤•à¤¾à¤° हो जाता था। आज उतने सचà¥à¤šà¥‡ न à¤à¥€ लगें – 239-242 के आसपास रहते होंगे … शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¥€ तो बहà¥à¤¤ होती हैं। अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ से मांज कर सà¥à¤µà¤° सिधà¥à¤¦ होते हैं। फिर तो सà¥à¤µà¤° हाथ जोड़ के खड़ा हो जाता है कि दिशा दो मà¥à¤à¥‡, कहाठजाऊठमैं। कोई à¤à¥€ चीज़ सिधà¥à¤¦ होने पर अनà¥à¤—त हो जाती है। लेकिन इसके लिठबहà¥à¤¤ शà¥à¤°à¤® और तप चाहिà¤à¥¤
अनूप : तो वह केवल मनोरंजन तक ही रहेगा या मनोरंजन के à¤à¥€ अलग अलग सà¥à¤¤à¤° होते हैं। मनोरंजन तो फिलà¥à¤®à¥€ गानों से à¤à¥€ हो जाà¤à¤—ा। बेसà¥à¤°à¥‡ गीतों से à¤à¥€ हो जाठशायद।
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : à¤à¤¸à¤¾ है न, इसीलिठशà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं की à¤à¥€ कई शà¥à¤°à¥‡à¤£à¤¿à¤¯à¤¾à¤ हैं। à¤à¤• वो है जो फोक गाने वाले को सà¥à¤¨ रहा है, à¤à¤• नौसिखियों को … पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ तो तà¤à¥€ जब आप उस लाइन में जाà¤à¤à¤—े। संगीत के पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° जितने à¤à¥€ हों, आधार तो सबका सà¥à¤µà¤° ही है – अलंकरण हैं – करà¥à¤£, मà¥à¤°à¤•à¥€, à¤à¥€à¥œ, खटका, जमजमा … और यह सब गà¥à¤°à¥ के कंठसे सीखा जा सकता है। तब तो वही आडियो -विज़à¥à¤…ल था ना -आज तो और à¤à¥€ साधन है।
अनूप : पहले तो गà¥à¤°à¥ क ेसाथ रहने का बड़ा महतà¥à¤µ था?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : कहते हैं न कि गà¥à¤°à¥ छ: छ: महीने चिलमें à¤à¤°à¤¾à¤¤à¥‡ थे। वह अचà¥à¤›à¤¾ ही था à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से। वे जो साल-साल, दो तीन साल तक नहीं सिखाते थे – मतलब कि शारà¥à¤—िद उस माहौल से à¤à¤Ÿà¤¯à¥‚न हो जाता था। और फिर सà¥à¤µà¤¤: ही चीज़ें अपने अंदर पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ होने लगती थीं। तो यह à¤à¥€ à¤à¤• तरीका था।
अब पà¥à¤¾à¤ˆ 40 मिनट के पीरियड में कà¥à¤¯à¤¾ होगी – ऊपर से सिलेवस और छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ —– लेकिन अब हमें à¤à¥€ अनà¥à¤à¤µ हो गया है और टीचर होने में à¤à¥€ फखà¥à¤° महसूस होता है। à¤à¤• टीचर à¤à¤• चीज़ को कितने तरीकों से समà¤à¤¾à¤¤à¤¾ है – कैसे आसान से आसान करता है – और धीरे धीरे मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² की ओर बà¥à¤¤à¤¾ है। अलग अलग आयॠवरà¥à¤— और समठके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° खà¥à¤¦ को ढालता चलता है।
अनूप : आपको कà¥à¤¯à¤¾ लगता है कि आप बांसà¥à¤°à¥€ वादक हैं या संगीत के अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• à¤à¥€ हूं, बांसà¥à¤°à¥€ वादक à¤à¥€à¥¤ जब à¤à¥€ कोई पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® आà¤à¤—ा तो सौ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ दà¤à¤—ा। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि जो सीखा है, वह तो खतà¥à¤® नहीं होता। इतना ज़रूर है कि टयूनिंग करने के लिà¤, रियाज़ करने के लिठकà¥à¤› समय ज़रूर चाहिà¤à¥¤ उसके बाद आदमी उसी खà¥à¤®à¤¾à¤° में आ जाता है –
जिआं जाहà¥à¤²à¥‚ बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ हà¥à¤‚दा, तां लाड़े जो गलांदे – हà¥à¤£ बणया विणà¥à¤£à¥ रूप तो वो जो à¤à¤• रूप हैं न – वो आरà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ का रूप होना चाहिà¤à¥¤ जब हम रियाज़ करेंगे तो वो रूप अपने आप ही आ जाता है। तà¤à¥€ कà¥à¤°à¤¿à¤à¤¶à¤¨ निकलेगी न !
अनूप : यानी बांसà¥à¤°à¥€ वादक फिर तान लेगा?
राजेनà¥à¤¦à¥à¤° : अà¤à¥€ à¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ कई बार लगता है कि मेरी ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ पूरी हो जाà¤à¤ और à¤à¤• दो साल अपने आप को अप टू डेट कर लठतो जिस à¤à¥€ सà¥à¤¤à¤° का कलाकार बनना चाहठ– बन सकता हà¤à¥¤ मतलब निराशा नहीं है।
Himachal Mitra is a quarterly publication in the service of Himachali people in India and abroad as a medium of expression and exchange of dialogue amongst themselves. It was born at the initiative of migrant Himchalis in Mumbai who came to Mumbai over the years in search of better life. Uprooted from their own soil by the hardship and scarcity of mountain life they got rooted in this city of islands by better life opportunity. By dint of hard labour, entrepreneurship and professional skills, they have settled down, flourished and helped hundreds of others to flourish and settle down over the years. Himachal Mitra is a tribute to their motherland.
A, B, C of Anup Sethi
अनूप सेठी का क, ख, ग
Academics…
काबिलियत…
born in ’58, he went on to become a known poet after his B. A. (honours), in ’78 and then M. A. & M. Phil. in ’80 & ’81 in Drama & Theater.
Broadcasting …
खासियत…
for about eight years produced many programmes as a Programme Executive with Vividh Bharati & AIR, Mumbai.
Creative…
गरिमा…
has been presenting, publishing research papers, articles, columns, reviews etc. on theatre and literature. also translated many literary works. noam chomsky-satta ke saamne, a collection of articles by Noam Chomsky and jagat mein mela, an anthology of poems are two books to his credit.
he lives in Goregaon, a northern suburb of Mumbai with his equally talented teacher wife and a daughter and his mother.
Great interview! Respected Gurung Sir was my music teacher when I was studying in K.V. Dalhousie during 1984-89. I have learned playing Harmonium and Tabla from him; and even participated in lots of competitions / youth festivals. He is a very kind hearted and dedicated teacher. I wish to meet him someday. Thanks for everything, Sir. Best regards.
Very well interviewed. Although there are some copy errors, but formation of the interview, soul behind it, is magical.
I appreciate truthfulness of Gurung sir, and thank him for sharing his story with us. It is very inspiring to all of us.
A good initiative by My Himachal. May in future we will read more articles like this on Himachalis.
My heartiest congratulations!!!
Good work!! thanks for sharing this. 🙂