बुर्ज दुबई : ऊंचाई मार गई

शिखर पर रहने की चाह सबके मन में रहती है चाहे वो खरा न भी हो, खरखराहट ही करता हो। खरखराहट करते हुए भी ऊपर की ओर बढ़ते जायेंगे। शिखर की ओर चढ़ना यानी ऊंचाई ही विकास है। विकास प्रत्‍येक करना चाहता है पर विकास जो ऊपर भेजता हो, उससे सब बचते हैं। ऊपर जाने की चाह तो है पर उपर जाना नहीं चाहते हैं।

उपर जायें भी और नीचे भी रह जायें मतलब गुजर जायें सब पायदानों से परन्‍तु रहें पृथ्‍वी पर ही। पर भला क्‍या ऐसा होना पॉसीबल है ? पब्लिक की इन ख्‍वाहिशों को पूरा करने के लिए ही लगता है बुर्ज दुबई इमारत का निर्माण हुआ पर आप इसे मीठी इमरती न समझें। आप सब परिचित ही होंगे इमरती जलेबी के कुनबे से है और मुंह में पानी की गंगा बहाने के लिए खूब कुख्‍यात है। डायबिटीज होते हुए भी बंदा एक आध पीस तो खा ही लेता है।

आखिर दाल की बनाई जाती है यह मिठाई और इसे खाने से आदमी को अपने आम होने का अहसास बना रहता है। आपने सुना ही है न, दाल रोटी खाओ और प्रभु के गुण गाओ। पर आजकल दाल की कीमतें भी बुर्ज दुबई से कंपीटिशन करती प्रतीत होती हैं। दाल खाने की कोशिश करी तो प्रभु का नाम भूल जायेंगे और प्रभु का नाम लेने की कोशिश की तो दाल का एक दाना तक नहीं हासिल होगा। मुझे तो यह भी महसूस हो रहा है कि दाल के बढ़ते रेट के दुख कम करने के लिए ही बुर्ज दुबई का निर्माण हुआ है। क्‍या आपको लगता है कि बुर्ज दुबई दालों की कीमतों के मामले में दालों से जीत पाएगी। आम आदमी का अनुभव तो ऐसा ही है जबकि खास का तो खास ही होगा उसे आम पब्लिक से क्‍या सरोकार ?

दालों की कीमतों से कंपीटिशन में भले ही बुर्ज दुबई विजयी न हो पाये परन्‍तु ऊपर बने रहने के बहुत से लाभ हैं, इन लाभों से ऊपर रहने वाला ही परिचित होता है नीचे वाला इन सुखों की कल्‍पना भी नहीं कर सकता। इतनी ऊपर की बिल्डिंगों में न तो सेल्‍समैन और न ही भिखारी आते हैं। आते भी होंगे तो नीचे ही अपनी कमाई करके लौट जाते होंगे। उपर वालों को तो खरोंच भी नहीं आती होगी। लुटेरे भी इतनी ऊपर जाने में कतराते हैं कि जितनी देर में ऊपर वाले के पास पहुंचेंगे उतनी देर में नीचे वाले खूब सारों को लूट लेंगे।

ऊपर रहने में सिर्फ लाभ ही लाभ हों ऐसा भी नहीं है। अब भला इतनी ऊंचाई पर दुकान कौन खोलना चाहेगा, किसी ने खोल भी ली तो खरीदारी करने कौन आएगा। सेल्‍समैन भी अपने सामान के प्रोमोशन के लिए वहां जाने से कतरायेंगे। सारे जगत में संभावनायें तलाशने वाले सेल्‍समैनों के लिए यह ऊंचाई की इंतहा होगी। सब जगह जीतने का जज्‍बा रखने वाले सेल्‍समैन यहां पर आने से कतरायेंगे। कतरा कतरा हो जायेंगे पर आप उतनी उपर जाने के लिए कतार नहीं पायेंगे। चींटियां जिनकी मिसाल दी जाती है कि वे मंजिल पाने के लिए कोशिश ही करती रहती हैं, वे भी उतनी ऊपर नहीं पाई जाती हैं।
इतनी ऊंची बिल्डिंग है इसलिए बिल्डिंग पर सीढि़यों के द्वारा चढ़ने और उतरने की दिलचस्‍प प्रति‍योगिता आरंभ की जा सकती है। कूदने की नहीं, कूदने में जोखिम ज्‍यादा हैं ? उतरने में प्रथम आने वाले से जब पूछा जायेगा कि प्रेरणा कहां से मिली तो वो पलटकर पूछेगा कि पहले यह बतलाओ कि धक्‍का किसने दिया था ?

यदि इस बिल्डिंग में सीढि़यां न बनाई गई होंती तो अपने स्‍थूल शरीर और मोटापे को लेकर परेशान रहने वाले इसमें रहने के लिए कभी विचार भी नहीं करते और इससे इस बिल्डिंग के फ्लैटों की कीमतों में भारी गिरावट पाई जाती। कम रेट पर फ्लैट बिकने के लिए उपलब्‍ध रहने के कारण इसे गरीबों की बस्‍ती भी कहा जा सकता था।

इस बिल्डिंग में रहने वालों को होम डिलीवरी की सुविधा या तो मिलेगी ही नहीं और अगर मिली भी तो जितनी कीमत वस्‍तु की नहीं, उससे अधिक उसे मंगवाने के लिए खर्चा करना होगा। कंपनियां या दुकानें अगर यह भी लिख दें कि बुर्ज दुबई बिल्डिंग के सिवाय होम डिलीवरी फ्री पायें बल्कि वहां पर डिलीवरी के अलग अलग मंजिलों के लिए अलग अलग रेट लिखे पायें तो हैरान मत हों। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि बाकी जो बचा वो चढ़ाई मार गई।
इस बिल्डिंग के बनने से महंगाई को खतरा हो रहा है और यह कहा जाये कि महंगाई तक शर्मिन्‍दा है तो आप शर्मिन्‍दा मत महसूस कीजिएगा। परिन्‍दे तक वहां पर, पर मारने से बचते हैं क्‍योंकि जहां पर उड़ते परिन्‍दों के पर गिनना आसान हो जाये, वहां पर कौन परिन्‍दा पर मारना चाहेगा। उपर की मंजिलों में रहने वालों को ध्‍वनि प्रदूषण से दो-चार होना होगा क्‍योंकि वहां हवाई जहाजों का शोर होगा जिससे शांतिदेवी तो शर्मिन्‍दा हो सकती है परन्‍तु कोहरे की मार नहीं होगी। वैसे एक धारणा यह भी है कि ऐसी बिल्डिंग कहीं भी हो, कितनी भी ऊंची हो परन्‍तु भ्रष्‍टाचार और महंगाई को मात नहीं दे पायेगी।

बच्‍चों के लिए खूब खेल होंगे जब वे खिड़कियों से झांकेंगे तो बादल खिड़की से नीचे दिखाई दिया करेंगे और वे वहां से रस्‍सी बाल्‍टी से पानी खींचने का प्रयास अवश्‍य करेंगे जिससे अभिभावकों को पुरातन जमाने के कुंओं की याद ताजा हो आयेगी। होली पर बच्‍चे पिचकारियों को बादलों में डुबोकर भर लेंगे। इतनी ऊंची बिल्डिंग के नीचे से नीचे से गुजरने वालों से होली खेलने के लिए खिड़की से बर्फ की सिल्‍ली फेंकने पर ही नीचे पानी के छींटे ही गिरेंगे। पर यह भी हो सकता है कि होली खेलने के लिए बर्फ की सिल्‍ली एक सप्‍ताह पहले से ही फेंक दी जाये। ऊंचाई की नयी निराली दुनिया होगी। उपर से नीचे गिरने वाली चीजों के मिलने की संभावना बिल्‍कुल नहीं होगी। खजूर और ताड़ के वृक्ष भी अपने को हीनतर महसूस कर रहे होंगे।

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