मुंबई मेरी जान

आज दूसरा दिन है. मुंबई आतंकवादियों के चंगुल में है। और मन बहुत उखड़ा हुआ है ।

यह शहर नहीं शरीर है मेरा
एक हिस्‍सा छलनी है
आपरेशन चल रहा है कब से
बेहोशी की दवा नहीं दी गई है मुझे
शहर चल रहा है
घाव जल रहा है
खुली आंख से देख रहा हूं सब कुछ
शहर तकलीफ में है
झेल रहा है

हट जाओ तमाशबीनो
अपने काम में लगो

यह कायर का वार है
मैंने इसे जंग नहीं माना है
जंग में मेरा यकीन भी नहीं
पर तुम्‍हें यकीन के मानी पता ही नहीं

अनूप सेठी पिछले कई वर्षों से मुंबई में रह रहें हैं। सारगर्भित लेखन के फलस्वरूप उन्हें देश के शीर्ष कविओं में गिना जाता है। आज अनूप सेठी किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। रेडियो से भी अनूप सेठी जुड़े रहे हैं और इन दिनों “हिमाचल मित्र” पत्रिका का मुंबई से प्रकाशन कर रहे हैं। थोड़े ही समय में इस पत्रिका ने कुशल सम्पादन के फलस्वरूप अपनी अच्छी खासी पहचान बना ली है।

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